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________________ अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - वासुदेव का कोपःपाण्डवों का निर्वासन २४१ scccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccx (२१०) तए णं ते पंच-पंडवा जेणेव हत्थिणाउरे णयरे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छंति २ त्ता करयल जाव एवं वयासी-एवं खलु ताओ! अम्हे कण्हेणं णिव्विसया आणत्ता। तए णं पंडू राया ते पंच पंडवे एवं वयासी-कहण्णं पुत्ता! तुन्भे कण्हेणं वासुदेवेणं णिव्विसया आणत्ता? तए णं ते पंच-पंडवा पंडुरायं एवं वयासी-एवं खलु ताओ! अम्हे अवरकंकाओ पडिणियत्ता लवण समुदं दोण्णि जोयणसयसहस्साई वीईवई(त्ता)त्था। तए णं से कण्हे वासुदेवे अम्हे एवं वयइ-गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! गंगा महाणई उत्तरह जाव (चिट्ठह) ताव अहं एवं तहेव जाव चिट्ठामो। तएणं से कण्हे वासुदेवे सुट्टियं लवणाहिवई दछुण तं चेव सव्वं णवरं कण्हस्स चिंता ण (बुज्झइ) जुज्ज(वूच्च)इ जाव अम्हे णिव्विसए आणवेइ। शब्दार्थ - जुजइ (बुज्झइ) - बुध्यते।। भावार्थ - फिर पांचों पांडव हस्तिनापुर आए। पांडु राजा के समक्ष उपस्थित हुए। हाथजोड़कर, प्रणमन कर यावत् उनसे बोले-पिताश्री! कृष्ण वासुदेव ने हमें देश निकाला दे दिया है। पांडु ने पांचों पाण्डवों से पूछा-पुत्रो! कृष्ण वासुदेव ने ऐसा क्यों किया? ... तब उन्होंने कहा - पिताश्री! इस अमरकंका से चलकर दो लाख योजन विस्तीर्ण लवण समुद्र को जब पार कर लिया। तब कृष्ण वासुदेव ने हमें कहा - देवानुप्रियो! तुम गंगा महानदी को पार कर यावत् मेरी प्रतीक्षा करते हुए तट पर रुको। मैं तब तक लवणाधिपति सुस्थित देव से मिल आऊँ यावत् हमने महानौका द्वारा समुद्र को पार किया। किनारे पर रुके। कृष्ण वासुदेव के सामर्थ्य की परीक्षा करने हेतु नौका को छिपा दिया। सुस्थित देव से मिल कर कृष्ण आए। आगे का सारा वृत्तांत यहाँ योजनीय है। विशेष बात यह है कि, पांडव पिता से बोले-कृष्ण वासुदेव के संबंध में हमने सोचा तक नहीं था कि इस संबंध में कृष्ण वासुदेव हमें देश निर्वासन का आदेश दे देंगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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