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________________ २३० అబిబిబిబిబి56 ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ०००० SOOOX जब राजा पद्मनाभ की सेना का तिहाई भाग ही बच रहा। वह अशक्त, निर्बल पुरुषार्थ और पराक्रम रहित हो गया । 'अब कोई सहारा नहीं है' - यों सोचकर वह अमरकंका की ओर लौट पड़ा। राजधानी में प्रवेश कर दरवाजे बंद करवा दिए एवं नगर रक्षार्थ सज्जित हुआ । (१८) तए णं से कहे वासुदेवे जेणेव अवरकंका तेणेव उवागच्छइ २ त्ता रहं ठवेइ २ त्ता रहाओ पच्चोरुहइ २ ता वेउव्विय समुग्धाएणं समोहणइ एगं महं रसीहरूवं विउव्वइ २ त्ता महया - महया सद्देणं पायदद्दरियं करेइ । तए णं (से) कण्णं वासुदेवेणं महया - महया संद्देणं पायद्दरएणं करणं समाणेणं अवरकंका रायहाणी संभग्गपागारगो (पु) उराट्टालयचरियतोरणपल्हत्थिय पवरभवणसिरिघरा सर (स्) सरस्स धरणियले सण्णिवइया । नगर का शब्दार्थ - संभग्ग - संभग्न- नष्ट-भ्रष्ट, पागार - प्राकार परकोटे, गोपुर मुख्य द्वार, चरिय चरिका - नगर के परकोटे का मध्यवर्ती मार्ग, पल्हत्थिय - नगर का मुख्य मार्ग, सिरिघरा - कोषागार, सरसरस्स - टूटते हुए भवनों के गिरने का शब्द । भावार्थ कृष्ण वासुदेव अमरकंका राजधानी पहुँचे। वहाँ जाकर अपने रथ को रोका। नीचे उतरे। वैक्रिय समुद्घात किया । एक बहुत बड़े नृसिंह के रूप की विकुर्वणा की, सिंह रूप धारण किया, फिर जोर-जोर से शब्द करते हुए जमीन पर अपने पैर पटके । इस प्रकार ज्यों ही उन द्वारा उच्च शब्द पूर्वक चरण घात किया गया, अपरकंका राजधानी के परकोटे, मुख्य द्वार, अट्टालिका, प्राकार के मध्यवर्ती मार्ग, तोरण द्वार, मुख्य मार्ग, उत्तम भवन, कोषागार आदि सरसराहट करते हुए धडाम से जमीन पर गिर पड़े। पद्मनाभ का आत्म-समर्पण - Jain Education International - - (१६०) तए णं से पउमणाभे राया अवरकंकं रायहाणिं संभग्ग जाव पासित्ता भीए दोवई देविं सरणं उवेइ । तए णं सा दोवई देवी पउमणाभं रायं एवं वयासीकिणं तु देवाणुप्पिया! ण जाणसि कण्हस्स वासुदेवस्स उत्तमपुरिसस्स विप्पियं For Personal & Private Use Only -- www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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