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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - देव सहायता से समुद्र पार २२३ xcccccccccccccccccssoccessocESEEGGECEBSCREGScex
(१७६) . तए णं से सुटिए देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - किण्हं देवाणुप्पिया! जहा चेव पउमणाभस्स रण्णो पुव्वसंगइएणं देवेणं दोवई जाव संहरिया तहा चेव दोवई देविं धायईसंडाओ दीवाओ भारहाओ जाव हत्थिणारं साहरामि उदाहु पउमणाभं रायं सपुरबलवाहणं लवण समुद्दे पक्खिवामि?
__भावार्थ - तब सुस्थित देव ने कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय! जैसे पद्मनाभ राजा के पूर्वभव के साथी देव ने द्रौपदी देवी का हस्तिनापुर से हरण कर पद्मनाभ राजा के यहाँ पहुंचा दिया। क्या मैं उसी तरह द्रौपदी देवी को धातकीखण्ड द्वीप-भरत क्षेत्र से यावत् वापस हस्तिनापुर पहुँचा दूं? अथवा सेना, वाहन सहित राजा पद्मनाभ को लवण समुद्र में फेंक दूं।
(१७७) . तए णं से कण्हे वासुदेवे सुट्टियं देव एवं वयासी - मा णं तुम देवाणुप्पिया! जाव साहराहि, तुमं णं देवाणुप्पिया! मम लवण समुद्दे पंचहिं पंडहिं सद्धि अप्पछट्ठस्स छण्हं रहाणं मग्गं वियराहि, सयमेव णं अहं दोवईए कूवं गच्छामि।
भावार्थ - तब कृष्ण वासुदेव ने सुस्थित देव से यों कहा - देवानुप्रिय! तुम यावत् द्रौपदी देवी का संहरण मत करो- उसे वापस हस्तिनापुर मत पहुँचाओ। तुम तो केवल छः रथ सहित पाँच पांडवों को और मुझे लवण समुद्र में जाने का रास्ता दे दो। मैं स्वयं ही द्रौपदी देवी को खोज कर वापस ले आऊँगा।
(१७८) तए णं से सुटिए देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - एवं होउ। पंचहिं पंडवेहिं सद्धिं अप्पछट्ठस्स छण्हं रहाणं लवण समुद्दे मग्गं वियरइ। ____ भावार्थ - तब सुस्थित देव ने कहा - ऐसा ही होगा। फिर कृष्ण वासुदेव एवं पाँचों पाण्डवों को छह रथों सहित लवण समुद्र में जाने का मार्ग दिया।
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