________________
२१६
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
हुआ था। उसके पास से देवी द्रौपदी को न जाने कोई देव, दानव, किंपुरुष, किन्नर उठाकर ले गया हो, उसे कहीं फेंक दिया हो।
देवानुप्रियो! द्रौपदी देवी का शब्द, छींक या प्रवृत्ति के संबंध में जो कोई सूचित करेगा, उसे राजा पाण्डु प्रचुर धन देगा, ऐसी घोषणा करवाकर मुझे अवगत कराओ। कौटुंबिक पुरुषों ने राजाज्ञानुसार वैसा ही किया तथा वापिस सूचित किया।
(१६०) तए णं से पंडूराया दोवईए देवीए कत्थइ सुई वा जाव अलभमाणे कोंती देवीं सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! बारवई णयरिं कण्हस्स वासुदेवस्स एयमढें णिवेदेहि। कण्हे णं. परं वासुदेवे दोवईए देवीए मग्गणगवेसणं करेज्जा अव्वहा ण णज्जइ दोवईए देवीए सुई वा खुइं वा पवित्तिं वा उवलभेज्जा।
भावार्थ - राजा पांडु जब द्रौपदी देवी के संबंध में कहीं भी उसके शब्द यावत् प्रवृत्ति आदि के संबंध में सूचना नहीं प्राप्त कर सका तो कुंती देवी को बुलाया और कहा - देवानुप्रिये! तुम द्वारवती जाओ एवं कृष्ण वासुदेव से यह निवेदन करो कि वे द्रौपदी देवी का मार्गण-गवेषण करे अन्यथा उसके शब्द, छींक, प्रवृत्ति आदि कुछ भी पाना अशक्य होगा। कुंती द्वारा सहायता हेतु श्रीकृष्ण से अनुरोध
(१६१) तए णं सा कोंती देवी पंडुरण्णा एवं वुत्ता समाणी जाव पडिसुणेइ २ त्ता ण्हाया कयबलिकम्मा हत्थिखंधवरगया हत्थिणारं णयरं मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ २ त्ता कुरुजणवयं मझमझेणं जेणेव सुरट्ठाजणवए जेणेव बारवई णयरी जेणेव अग्गुज्जाणे तेणेव उवागच्छइ २ ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ २ त्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी - गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! जेणेव (बारवई णं०) बारवई णयरिं अणुपविसह २ त्ता कण्हं वासुदेवं करयल० एवं वयह-एवं
खलु सामी! तुन्भं पिउच्छा कोंती देवी हत्थिणाउराओ णयराओ इहं हव्वमागया . तुम्भं दसणं कंखइ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org