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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - द्रौपदी की खोज
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द्रौपदी की न तो कुछ आवाज, छींक या प्रवृत्ति ही उसे ज्ञात हुई। वह राजा पांडु के पास आया और उनसे इस प्रकार कहा।
तए ण स पड राया काडाबयपारस सहावइ र । एप ५पाता - ive नन्दंणगुप्सात्यारामियागात्पन पपासप तोवह देही, मा णज्जइ केणइ देवेण वा दाणवेण वा किंपुरिसेण वा किण्णरेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा णिया वा अवक्खित्ता वा? तं इच्छामि णं ताओ! दोवईए देवीए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं क(रित्तए)यं।
भावार्थ - तात! मैं महल की छत (अगासी)पर सो रहा था। मेरे पास से द्रौपदी देवी को न मालूम कौन देव, दानव, किंपुरुष, किन्नर, महोरग (नाग) या गंधर्व हरण कर ले गया। न जाने कहीं उसको अवक्षिप्त-खड्डे, कुएं में डाल दिया। तात! मैं चाहता हूँ, द्रौपदी देवी की सब ए म्होज कराई जानी चाहिए।
. (१५६) तए णं से पंडू राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी - गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! हथिणाउरे णयरे सिंघाडग तियचउक्कचच्चर-महापहपहेसु महया २ सद्देणं उग्घोसेमाणा २ एवं वयह - एवं खलु देवाणुप्पिया! जुहिट्टिल्लस्स रण्णो आगासतलगंसि सुहपसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी ण णज्जइ केणइ देवेण वा दाणवेण वा किंपुरिसेण वा किण्णरेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा णिया वा आक्खित्ता वा, तं जो णं देवाणुप्पिया! दोवईए देवीए सुई वा खुई वा पवित्तिं वा परिकहेइ तस्स णं पंडू राया विउलं अत्थसंपयाणं (दाणं) दलयइ-त्तिकटु घोसणं घोसावेह २ त्ता एयमाणचियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोइंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति।
भावार्थ - तब राजा पांडु ने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और कहा - देवानुप्रियो! तुम जाओ एवं तिराहे, चौराहे, चौक, चत्वर, महापथ, बड़े रास्ते, छोटे रास्ते इत्यादि सभी जगह उच्च स्वर से यह घोषणा करते हुए कहो - देवानुप्रियो! महल की छत पर राजा युधिष्ठिर सोया
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