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________________ अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - अन्यान्य राजाओं को आमंत्रण १८५ COcccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccx (१०२) अट्टमं दूयं कोडिण्णं णयरं। तत्थ णं तुमं रुप्पिं भेसगसुयं करयल तहेव जाव समोसरह। भावार्थ - आठवें दूत को कौंडिन्य नगर जाकर वहाँ भीष्मक के पुत्र राजा रूक्मी को हाथ जोड़ कर, मस्तक नवाकर उसी प्रकार कहने का आदेश दिया यावत् स्वयंवर में पधारे। (१०३) णवमं दूयं विराट णयरं तत्थ णं तुमं कीयगं भाउसयसमग्गं करयल जाव समोसरह। भावार्थ - नवें दूत को विराटनगर जाकर राजा कीचक को सौ भाइयों सहित हाथ जोड़कर, विनय पूर्वक निवेदन करने का आदेश दिया यावत् स्वयंवर में पधारें। (१०४) ... दसमं दूयं अवसेसेसु (य) गामागरणगरेसु अणेगाइं रायसहस्साइं जाव समोसरह।. भावार्थ - दसवें दूत को अवशिष्ट ग्राम, नगर आदि स्थानों में जाकर वहाँ के सहस्रों राजाओं को हाथ जोड़कर, मस्तक झुकाकर उसी प्रकार निवेदन करने का आदेश दिया यावत् स्वयंवर में पधारे। . .. ... (१०५) तए णं से दूए तहेव णिग्गच्छइ जेणेव गामागर जाव समोसरह। भावार्थ - पूर्वोक्त रूप में आदिष्ट सभी दूत यथा समय राजधानी, ग्राम, नगर आदि अपने गंतव्य स्थानों में गए यावत् द्रुपद राजा की आज्ञानुसार सभी को निवेदन किया कि आप स्वयंवर में पधारें। (१०६) तए णं ताई अणेगाइं रायसहस्साइं तस्स दूयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्ठ० तं दूयं सक्कारेंति सम्माणेति स० २ त्ता पडिविसर्जिति। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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