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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - සපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපාපපපපපපපපපපපපපපපපපපපු ___ भावार्थ - इसी क्रम से तीसरे दूत को चंपा नगरी जाकर शैल्य और नंदिराज सहित अंगराज कर्ण (कृष्ण) को हाथ-जोड़ कर, मस्तक नवाकर पूर्ववत् यावत् स्वयंवर में पधारने का निवेदन करने की आज्ञा दी।
(8) चउत्थं दूयं सुत्तिमई णयरिं, तत्थ णं तुमं सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसयसंपरिवुडे करयल तहेव जाव समोसरह।
भावार्थ - चौथे दूत को शुक्तिमती नगरी जाकर दमघोष के पुत्र तथा पांच सौ भाइयों सहित राजा शिशुपाल को हाथ जोड़ कर मस्तक नवाकर स्वयंवर में पधारने का निवेदन करो, ऐसी आज्ञा दी।
(६६) पंचमगं दूयं हत्थिसीसणय तत्थ णं तुमं दमदंतं रायं करयल तहेव जाव समोसरह। •
भावार्थ - पांचवें दूत को हस्तिशीर्षनगर जाकर वहाँ राजा दमदंत को हाथ जोड़ कर मस्तक नवाकर उसी प्रकार कहने का यावत् स्वयंवर में पधारे, यह निवेदन करने का आदेश दिया।
.. (१००) छटुं दूयं महुरं णयरिं, तत्थ णं तुमं.धरं रायं करयल जाव समोसरह।
भावार्थ - छठे दूत को मथुरा जाकर धर नामक राजा को हाथ जोड़ कर नम्रता पूर्वक उसी प्रकार कहने का यावत् स्वयंवर में पधारे, यह निवेदन करने का आदेश दिया।
(१०१) सत्तमं दूयं रायगिहं णयरं, तत्थ णं तुमं सहदेवं जरा सिंधुसुयं करयल जाव समोसरह।
भावार्थ - सातवें दूत को राजगृह जाकर राजा जरासंध के पुत्र सहदेव को हाथ जोड़कर, मस्तक नवाकर उसी प्रकार कहने का यावत् स्वयंवर में पधारे, यह निवेदन करने का आदेश दिया।
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