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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - अन्यान्य राजाओं को आमंत्रण १८३ SEEGEccccccccccccccccccccccccccccccccccccceracock
हस्तिनापुर : आमंत्रण
(६५) तए णं से दुवए राया दोच्चं दूयं सदावेइ २ ता एवं वयासी-गच्छ (ह) णं तुमं देवाणुप्पिया! हत्थिणारं णयरं तत्थ णं तुम पंडुरायं सपुत्तयं जुहिडिल्लं भीमसेणं अजुणं णउलं सहदेवं दुजोहणं भाइसयसमग्गं गंगेयं विदुरं दोणं जयदहं सउणीं कीवं आसत्थामं करयल जाव कट्ट तहेव समोसरह।
शब्दार्थ - गंगेयं - गांगेय-गंगापुत्र भीष्म, कीवं - कृप-कृपाचार्य।
भावार्थ - राजा द्रुपद ने दूसरी बार दूत को बुलाया और कहा - देवानुप्रिय! तुम हस्तिनापुर नगर को जाओ। वहाँ अपने पुत्र युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन, नकुल एवं सहदेव सहित राजा पाण्डु तथा अपने सौ भाइयों सहित दुर्योधन भीष्म, विदुर, द्रोणाचार्य, जयद्रथ, शकुनी, कृपाचार्य एवं अश्वत्थामा को हाथ जोड़ कर यावत् मस्तक पर अंजलि बांधकर पूर्ववत् . स्वयंवर का समाचार कहो और निवेदन करो-आप सब पधारें।
. (६६)
- तए णं से दूए एवं वयासी-जहा वासुदेव णवरं भेरी णत्थि जाव जेणेव कंपिल्लपुरे णयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
भावार्थ - उस दूत ने हस्तिनापुर जाकर वैसा ही सब कहा, जैसा द्वारिका जाकर श्री कृष्ण वासुदेव से कहा था। अन्तर इतना है कि हस्तिनापुर में भेरी नहीं थी यावत् यों आमंत्रण प्राप्त कर पाण्डु आदि सभी कांपिल्यपुर जाने को उद्यत हुए।
अन्यान्य राजाओं को आमंत्रण
.. (६७) एएणेव कमेणं तच्चं दूयं चंपाणयरिं, तत्थ णं तुमं कण्हं अंगरायं सेल्लणंदिरायं. करयल तहेव जाव समोसरह।
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