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________________ १८६ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र *09000000000000uoeconocophocesos descopos. भावार्थ - यों आमंत्रण प्राप्त कर सहस्रों राजा बहुत हृष्ट, परितुष्ट हुए। उन्होंने आमंत्रण देने आए दूतों का सत्कार सम्मान कर, उन्हें विदा किया। आमंत्रित राजन्यगण रवाना (१०७) तए णं ते वासुदेव पामोक्खा बहवे सयसहस्सा पत्तेयं २ ण्हाया सण्णद्ध हत्थिखंधवरगया हयगयरह० महया भडचडगररहपहकर० सएहिं २ णयरेहितो अभिणिग्गच्छंति २ त्ता जेणेव पंचाले जणवए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। भावार्थ - तत्पश्चात् वासुदेव आदि सहस्रों राजाओं में से प्रत्येक स्नानादि कर, कवच आदि धारण कर, स्वयंवर में जाने हेतु हाथियों पर आरूढ हुए। अश्व, ग़ज, रथ एवं पदाति योद्धाओं से सुसज्ज, चतुरंगिणी सेनाओं के साथ अपने सैकड़ों गज-रथ-अश्वारूढ सहगामी योद्धाओं से घिरे हुए अपने-अपने नगरों से निकले तथा पांचाल जनपद की ओर जाने को तत्पर हुए। स्वयंवर विषयक निर्देश (१०८) तए णं से दुवए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! कंपिल्लपुरे णयरे बहिया गंगाए महाणईए अदूरसामंते एगं महं सयंवरमंडवं करेह अणेगखंभसयसण्णिविटुं लीलट्टियसालभंजियागं जाव पच्चप्पिणंति। ___ भावार्थ - राजा द्रुपद ने अपने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और आदेश दिया-तुम जाओ और कांपिल्यनगर के बाहर, गंगामहानदी से न अधिक निकट न अधिक दूर, एक महान् विशाल स्वयंवर-मंडप की रचना कराओ। वह सैंकड़ों खंभों पर समवस्थित हो, क्रीड़ारत शालभंजिका की पुतलियों से सज्जित हो यावत् कौटुंबिक पुरुषों ने यह सब संपादित कर राजा को वापस सूचित किया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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