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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - स्वयंवर की घोषणा
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(६१) तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! सभाए सुहम्माए सामुदाइयं भेरि तालेहि। तए णं से कोडुंबियपुरिसे करयल जाव कण्हस्स वासुदेवस्स एयमढें पडिसुणेइ २ ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया भेरी तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सामुदाइयं भेरि महया २ सद्देणं तालेइ।
शब्दार्थ - सामुदाइयं भेरि - जन-जन में संवाद-प्रसार प्रयोजनीय दुंदुभि को।
भावार्थ - तदनंतर कृष्ण वासुदेव ने कौटुंबिक पुरुष को बुलाया और उसको आदेश दिया-देवानुप्रिय! जाओ, सुधर्मा सभा में स्थित सामुदायिक भेरी बजाओ। यह आदेश सुनकर कौटुंबिक पुरुष ने दोनों हाथों से अंजलि बांधकर यावत् मस्तक पर लगाकर कृष्ण वासुदेव का यह आदेश स्वीकार किया। वह सुधर्मा सभा में सामुदायिक भेरी के पास आया और उसे इस प्रकार बजाया कि उससे उच्च ध्वनि निकलने लगी।
(६२) . तए णं ताए सामुदाइयाए भेरीए तालियाए समाणीए समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा जाव महासेणपामोक्खाओ छप्पणं बलवगसाहस्सीओ व्हाया जाव विभूसिया जहाविभवइडिसक्कारसमुदएणं अप्पेगइया जाव पायविहारचारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता करयल जाव कण्हं वासुदेवं जएणं विजएणं वद्धावेंति। ___ भावार्थ - सामुदायिक भेरी के बजाए जाने पर समुद्रविजय आदि दस दशार्ह यावत् महासेन आदि छप्पन सहस्र बलवान योद्धा आदि ने स्नान किया यावत् अलंकार भूषित होकर अपने-अपने वैभव ऋद्धि एवं प्रतिष्ठा के अनुरूप यावत् कई विविध वाहनों पर तथा कतिपय पैदल कृष्ण वासुदेव के पास आये और उन्हें हाथ जोड़ कर मस्तक पर हाथों से अंजलि बांधे, नमन कर जय-विजय द्वारा वर्धापित किया।
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