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________________ १८० ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र KOREGORGEORGECREENNEGEEGeeccccccceaeGEGGEEEEEEEEEX मझमझेणं णिग्गच्छइ० पंचाल जणवयस्स मज्झमज्झेणं जेणेव देसप्पंते तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सुरट्ठाजणवयस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव बारवई णयरी तेणेव उवागच्छइ २ त्ता बारवई णयरिं मझमझेणं अणुप्पविसइ २ त्ता जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ २ त्ता चाउग्घंटे आसरहं ठवेइ २ ता रहाओ पच्चोरुहइ २ त्ता मणुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते पायविहारचारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ २ ता कण्हं वासुदेवं समुद्दविजयपामोक्खे य दस दसारे जाव बलवगसाहस्सीओ करयल तं चेव जाव समोसरह। .. शब्दार्थ - सुरट्ठाजणवयस्स - सौराष्ट्र जनपद, वग्गुरा - समूह। भावार्थ - दूत ने स्नान किया यावत् उसने शरीर को अलंकारों से सुशोभित किया। वह चातुर्घण्ट अश्वरथ पर सवार हुआ। बहुत से पुरुषों से घिरा हुआ, कवच आदि से सुसज्ज यावत् अस्त्र-शस्त्र लिए हुए कांपिल्य पुर नगर के बीचों बीच होता हुआ निकला। पांचाल देश में आगे . बढ़ता हुआ उस प्रदेश के सीमांत भाग पर पहुँचा। सौराष्ट्र जनपद में प्रवेश कर उसके बीचों-बीच होता हुआ द्वारिका नगरी पहुंचा। नगरी के मध्य से गुजरता हुआ, वह कृष्ण वासुदेव की बहीर्वर्ती उपस्थानशाला-सभा भवन में पहुँचा। वहाँ अपने चातुर्घण्ट अश्वरथ को ठहराया। रथ से नीचे उतरा। फिर अपने सहवर्ती पुरुषों से घिरा हुआ, पैदल चलता हुआ, कृष्ण वासुदेव के पास समुद्र विजय-प्रमुख दस दसाई यावत् महासेन आदि छप्पन हजार बलिष्ठ योद्धाओं को हाथ जोड़ कर, मस्तक पर अंजलि बांधकर, वह सब निवेदित किया जो राजा द्रुपद ने अपनी पुत्री के स्वयंवर के संबंध में घोषित करने हेतु कहा था। ऐसा कर उसने उनसे निवेदन किया कि अनुग्रह कर स्वयंवर में पधारें। (६०) तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स दूयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्टतुढे जाव हियए तं दूयं सक्कारेइ सम्माणेइ स० २ त्ता पडिविसजेइ। भावार्थ - कृष्ण वासुदेव दूत का कथन सुनकर बहुत हर्षित एवं प्रसन्न हुए। उन्होंने दूत का सत्कार-सम्मान कर उसे विदा किया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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