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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र sccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccx
भावार्थ - सुकुमालिका ने आर्या गोपालिका के इस कथन को न आदर दिया और न उसका महत्व ही समझा। वह पूर्ववत् ही आचरण करने लगी। तब दूसरी साध्वियाँ भी सुकुमालिका की बार-बार अवहेलना यावत् तिरस्कार करती हुई, उसे उस प्रवृत्ति से निवृत्त करने का प्रयास करने लगी। श्मणी संघ का परित्याग
(७८) तए णं तीसे सूमालियाए समणीहि णिग्गंथीहिं हीलिज्जमाणीए जाव वारिज्जमाणी इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-जया णं अहं. अगारवासमझे वसामि तया णं अहं अप्पवसा। जया णं अहं मुंडे भवित्ता पव्वइया तया णं अहं परवसा। पुव्विं च णं ममं समणीओ आढायंति इयाणिं णो आढायंति। तं सेयं खलु मम कल्लं पाउप्पभायाए गोवालियाणं अंतियाओ पडिणिक्खमित्ता पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए-त्तिकटु एवं संपेहेइ २ त्ता कल्लं पा० गोवालियाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिणिक्खमइ २ त्ता पाडिएक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।
शब्दार्थ - अप्पवसा - स्वाधीना, पाडिएक्कं - पार्थक्य।
भावार्थ - साध्वियों द्वारा यों अवहेलना यावत् तिरस्कार किए जाने पर सुकुमालिका के मन में ऐसा विचार यावत् मनोभाव उत्पन्न हुआ - जब मैं घर में थी तब स्वाधीन थी। जब से मुंडित होकर दीक्षित हुई हूँ, तब से परतंत्र हूँ। पहले साध्वियाँ मेरा आदर करती थी, अब वैसा नहीं करती। इसलिए मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि प्रातःकाल होने पर गोपालिका के पास से प्रतिनिष्क्रांत होकर पृथक् उपाश्रय में रहूँ। यों सोचकर वह अगले दिन सवेरे आर्या गोपालिका के पास से निकल गई ।
(७६) तए णं सा सूमालिया अज्जा अणोहट्टिया अणिवारिया सच्छंदमई अभिक्खणं २ हत्थे धोवेइ जाव चेएइ तत्थ वि य णं पासत्था पासत्थविहारीणी ओसण्णा २ कुसीला २ संसत्ता २ बहुणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ २
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