________________
अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - द्रौपदी-वृत्तांत
१७५ Sccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccer अद्धमासियाए संलेहणाए तस्स ठाणस्स अणालोइय अपडिक्कंता कालमासे काले किच्चा ईसाणे कप्पे अण्णयरंसि विमाणंसि देवगणियत्ताए उववण्णा। तत्थेगइयाणं देवीणं णव पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं सूमालियाए देवीए णव पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता।
शब्दार्थ - अणोहटिया - उच्छृखल, सच्छंदमई - स्वच्छंद बुद्धियुक्त, ओसण्णा - आलस्य या प्रमाद युक्त। . भावार्थ - आर्या सुकुमालिका उच्छृखल, निरंतर अपनी दूषणीय प्रवृत्ति से अनिवृत्त तथा स्वच्छंद रहती हुई, बार-बार हाथ धोती यावत् स्वाध्याय करती। वह इस प्रकार शिथिलाचारिणी हो गई। संयम, चारित्राराधना में आलस्य युक्त रहने लगी। उसने साध्वाचार के विपरीत, देह संस्कार में आसक्त रहते हुए बहुत वर्ष तक श्रामण्य पर्याय का पालन किया। पन्द्रह दिन की संलेखना की किंतु अपने संयम विपरीत आचार का आलोचन, प्रतिक्रमण नहीं किया। फलस्वरूप वह आयुष्य पूर्ण होने पर, मृत्यु को प्राप्त कर ईशान कल्प में किसी एक देव विमान में देवगणिका के रूप में उत्पन्न हुई। वहाँ किन्ही-किन्ही देवों की तो नौ पल्योपम स्थिति बतलाई गई है। तदनुसार सुकुमालिका देवी की भी इतनी ही स्थिति हुई।
विवेचन - यहाँ सुकुमालिका का ईशान कल्प में, किसी एक विमान में देवगणिका के रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख हुआ है। सहज ही शंका उठती है कि किसी विशेष विमान का नामोल्लेख न कर किसी एक विमान में उत्पन्न होने का यहाँ अनिश्चय मूलंक उल्लेख कैसे हुआ?
पीछे के सूत्रों में भी कहीं-२ इसी प्रकार का वर्णन प्राप्त होता है। . यहाँ यह ज्ञातव्य है - माथुरी तथा वलभी में हुई आगम वाचनाओं में जब आगमों का विविध बहुश्रुत मुनियों द्वारा पाठ-मेलनहीं किया गया तब संभवतः उनकी स्मृति में इन प्रसंगों के विमानों के नाम न रहे हों। अतएव "अण्णयरंसि विमाणंसि - अन्यतर-किसी एक विमान में" ऐसा उल्लेख कर पाठ-पूर्ति कर दी गई हो। ..
द्रौपदी-वृत्तांत
(८०) तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूहीवे २ भारहे वासे पंचालेसु जणवएसु
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org