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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - सुकुमालिका की देह संस्कारपरायणता
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धोवेइ गोज्झतराई धोवेइ जत्थ णं ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेएइ तत्थ वि य णं पुव्वामेव उदएणं अब्भुक्खइत्तों तओ पच्छा ठाणं वा ३ चेए । शरीर बकुसा - शरीर संस्कार परायणा ।
शब्दार्थ - सरीरबउसा
भावार्थ आर्या सुकुमालिका शरीर संस्कार परायणा हो गई। शरीर को स्वच्छ रखने में आसक्त हो गई । वह बार-बार अपने हाथ, पैर, सिर, मुँह, स्तन मध्यवर्ती भाग, काँख तथा गुप्तांग को प्रक्षालित करती । जिस स्थान पर कायोत्सर्ग हेतु खड़ी होती, सोती, स्वाध्याय हेतु बैठती, उसको भी पहले जल छिड़क कर साफ करती तदनंतर ही वह उपरोक्त सभी कार्य करती ।
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(७६)
तए णं ताओ गोवालियाओ अज्जाओ सुमालियं अज्जं एवं वयासी - एवं खलु देवा० ! अज्जे ! अम्हे समणीओ णिग्गंथीओ इरियासमियाओ जाव बंभचेरधारिणीओ, णो खलु कप्पड़ अम्हं सरीरबाउसियाए होत्तए, तुमं च णं अज्जे! सरीरबाउसिया अभिक्खणं २ हत्थे धोवेसि जाव चेएसि, तं तुमं णं देवाणुप्पिए ! एय (त) स्स ठाणस्स आलोएहि जाव पडिवज्जाहि ।
भावार्थ - आर्या गोपालिका ने सुकुमालिका से कहा- देवानुप्रिये! हम निर्ग्रन्थ परंपरानुवर्तिनी श्रमणियाँ हैं । ईर्या समिति यावत् ब्रह्मचर्यादि व्रतों को स्वीकार किए हुए हैं। इसलिए हमें दैहिक स्वच्छता कल्पनीय नहीं है । आर्ये! तुम देह संस्कार से अभिभूत होकर बार-बार हाथ धोती हो यावत् स्वाध्याय आदि करती हो । देवानुप्रिये! तुम बकुश चारित्ररूप स्थान-साधुत्वगत दूषणीय आचार की आलोचना करो यावत् तदर्थ उसके लिए प्रायश्चित्त लो ।
(७७)
तणं सूमालियाणं गोवालियाणं अज्जाणं एयमट्ठे णो आढाइ णो परिजाणइ अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी विहरइ । तए णं ताओ अज्जाओ सूमालियं अज्जं अभिक्खणं २ अभिहीलंति जाव परिभवंति अभिक्खणं २ एयमट्ठ णिवारेंति ।
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