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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපුදු
(६६) तए णं सा सूमालिया अज्जा अण्णया कयाइ जेणेव गोवालियाओ अज्जाओ तेणेव उवागच्छइ २ त्ता वंदइ णमंसइ वं०२ एवं वयासी - इच्छामि णं अज्जाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी चंपाओ वाहिं सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते छठें छठेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सूराभिमुही आयावेमाणी विहरित्तए।
शब्दार्थ - सूराभिमुही - सूर्य के सम्मुख, आयावेमाणी - आतापना लेती हुई।
भावार्थ - आर्या सुकुमालिका किसी दिन आर्या गोपालिका के पास आई। आकर वंदन, . नमस्कार किया और बोली - आर्या! मैं आपसे अनुज्ञा प्राप्त कर सुभूमिभाग उद्यान के निकट निरंतर बेले-बेले की तपस्या करती हुई, सूर्य के सम्मुख आतापना लेना चाहती हूँ।
(७०) तए णं ताओ गोवालियाओ अज्जाओ सूमालियं एवं वयासी - अम्हे णं अज्जे! समणीओ णिग्गंथीओ ईरियासमियाओ जाव गुत्तबंभचारिणीओ, णो खलु अम्हं कप्पइ बहिया गामस्स वा जाव सण्णिवेस्स वा छठंछट्टेणं जाव विहरित्तए, कप्पइ णं अम्हं अंतो उवस्सयस्स वइपरिक्खित्तस्स संघाडिबद्धियाए णं समतलपइयाए आयावित्तए। .
शब्दार्थ - वइपरिक्खित्तस्स - बाड़ या चारदीवारी से युक्त, संघाडिबद्धियाए - वस्त्र से आच्छादित देहयुक्त, समतलपइयाए - भूमि पर दोनों चरणों को बराबर स्थापित करते हुए।
भावार्थ - आर्या गोपालिका ने सुकुमालिका से कहा - आर्ये! ईर्यासमिति यावत् गुप्त ब्रह्मचर्यादि आचार युक्त हम श्रमणियों को गाँव के या सन्निवेश के बाहर बेले-२ की तपस्या के साथ यावत् आतापना लेना नहीं कल्पता है। हमारे लिए तो बाड़ या चारदीवारी से घिरे हुए उपाश्रय में, देह को वस्त्राच्छादित करते हुए, पैरों को भूमि पर समतल टिकाए हुए, आतापना लेना कल्पता है।
(७१) तए णं सा सूमालिया गोवालियाए अज्जाए एयमढें णो सद्दहइ णो पत्तियइ
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