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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපු.
___ जब जिनदत्तपुत्र सागर ने देखा कि सुकुमालिका को गाढ़ी नींद आ गई है तो वह उसके पास से उठा। जहाँ अपनी पृथक् शय्या थी, वहाँ आकर लेट गया।
(४६) तए णं सूमालिया दारिया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा समाणी पई वया पइमणुरत्ता पई पासे अपस्समाणी तलिमाउ उढेइ २ त्ता जेणेव से सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ २ ता सागरस्स पासे णुवजइ। ____ शब्दार्थ - पइमणुरत्ता - पति के प्रति अनुराग युक्त।
भावार्थ - सुकुमालिका मुहूर्त भर पश्चात् जाग उठी। वह पतिव्रता थी, पति के प्रति उसके मन में बड़ा अनुराग था। जब उसने अपने पति को पार्श्व-बगल में नहीं देखा तो वह शय्या से उठी। उठकर वहाँ आई जहाँ उसके पति की शय्या थी। वह उस शय्या पर पति के पार्श्व में लेट गई।
सुकुमालिका का परित्याग
(५०) तए णं से सागरदारए सूमालियाए दारियाए दोच्चंपिं इमं एयारूवं अंगफासं पडिसंवेदेइ जाव अकामए अवसव्वसे मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठइ। तए णं से सागरदारए सूमालियं दारियं सुहपसुत्तं जाणित्ता सयणिजाओ उट्टेइ २ ता वासघरस्स दारं विहाडेइ २ त्ता मारामुक्के विव काए जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए।
शब्दार्थ - मारामुक्के - वध्य स्थान से मुक्त।
भावार्थ - सार्थवाह पुत्र सागर को दूसरी बार भी पुनः सुकुमालिका का वैसा ही ताप जनक अंग स्पर्श अनुभव हुआ। न चाहते हुए भी वह थोड़ी देर वहाँ स्थित रहा। जब उसने देखा सुकुमालिका सुखपूर्वक सो गई है तो वह अपनी शय्या से उठा, उठकर शयनागार का द्वार खोला तथा वध स्थान से छूटे हुए कौवे की तरह शीघ्रता से जिस ओर से आया था, उसी ओर चला गया। अर्थात् अपने घर वापस लौट गया।
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