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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - सुकुमालिका का परित्याग । xcccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccsex
(५१) तए णं सूमालिया दारिया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धा पइंवया जाव अपासमाणी सयणिजाओ उट्टेइ सागरस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेमाणी २ वासघरस्स दारं विहाडियं पासइ २ ता एवं वयासी - गए णं से सागरए - त्तिक? ओहयमणसंकप्पा जाव झियायइ।
भावार्थ - कुछ देर बाद सुकुमालिका जग गई। वह पतिव्रता थी यावत् पति के प्रति उसे बड़ा अनुराग था। वह शय्या से उठी। सार्थवाह पुत्र सागर को चारों ओर देखा। सागर को नहीं पाया। शयनागार के दरवाजे को खुला देखा तब उसने मन ही मन कहा - मेरा पति सागर चला गया। उसकी मनोभावना पर गहरा आघात पहुँचा। वह हथेली पर मुँह रखकर आर्तध्यान में निमग्न हो गई।
(५२) . तए णं सा भद्दा सत्थवाही कल्लं पाउप्पभायाए दासचेडियं सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिए! वहवरस्स मुहधोवणियं उवणेहि। तए णं सा दासचेडी भद्दाए एवं वुत्ता समाणी एयमठें तहत्ति पडिसुणेइ २ मुहधोवणियं गेण्हइ २ ता जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छ इ० सूमालियं दारियं जाव झियायमाणिं पासइ २ ता एवं वयासी - किण्णं तुमं देवाणुप्पिए! ओहयणमण संकप्पा जाव झियाहि।
शब्दार्थ - मुहधोवणियं - मुखधावनिका- दातुन।
भावार्थ - तदनंतर भद्रा सार्थवाही ने प्रातःकाल होने पर दासी को बुलाया और कहा - जाओ वधू और वर के लिए दातुन ले जाओ। भद्रा द्वारा यों कहे जाने पर दासी ने-‘ऐसा ही करूंगी'कहकर आज्ञा स्वीकार की। वह दातुन लेकर शयनगृह में गई। सुकुमालिका को आर्तध्यान में निमग्न देखा। वह बोली - देवानुप्रिये! तुम ऐसी नैराश्यपूर्ण मनोदशा में, क्यों चिंतन कर रही हो?
तए णं सा सूमालिया दारिया तं दासचेडीयं एवं वयासी - एवं खलु
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