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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - सुकुमालिका के विवाह का प्रस्ताव १५५ SaGaaaaaaaacocccccccccccccccCRICKEERINDESERRORICCCCE २ त्ता सागरदत्तस्स गिहस्स अदूरसामंतेण वीईवयइ। इमं च णं सूमालिया दारिया ण्हाया चेडिया संघपरिवुडा उप्पिं आगासतलगंसि कणगतेंदूसएणं कीलमाणी २ विहरइ।
भावार्थ - एक बार सार्थवाह जिनदत्त अपने घर से निकल कर सागरदत्त के घर के पास से गुजर रहा था। उस समय सुकुमालिका स्नानादि कर अपनी दासियों से घिरी हुई भवन की छत पर सोने के तारों से मढी हुई गेंद से क्रीड़ा कर रही थी।
- (३६) तए णं से जिणदत्ते सत्थवाहे सूमालियं दारियं पासइ २ त्ता सूमालियाए दारियाए रूवे य ३ जायविम्हए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी - एस णं देवाणुप्पिया! कस्स दारिया किं वा णामधेज्जं से? तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जिणदत्तेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ट० करयल जाव एवं वयासी - एस णं देवाणुप्पिया! सागरदत्तस्स स० धूया भद्दाए अत्तया सूमालिया णामं दारिया सुकुमालपाणिपाया जाव उक्किट्ठा।
भावार्थ - सार्थवाह जिनदत्त की दृष्टि उस कन्या सुकुमालिका पर पड़ी जो रूप यौवन एवं लावण्य युक्त थी। उसे देखकर वह विस्मित हो उठा। उसने अपने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और कहा - देवानुप्रियो! यह किसकी कन्या है? इसका क्या नाम है? . ___जिनदत्त सार्थवाह द्वारा यों कहे जाने पर कौटुंबिक पुरुष हृष्ट-तुष्ट हुए और हाथों को मस्तक पर लगाकर अंजलि बांधे यावत् मस्तक झुका कर उससे कहा - देवानुप्रिय! यह भद्रा की कोख से उत्पन्न सागरदत्त सार्थवाह की कन्या सुकुमालिका है। यह सर्वांग सुंदरी है यावत् उत्कृष्ट शरीरा है। . . . सुकुमालिका के विवाह का प्रस्ताव
. (४०) तएणं से जिणदत्ते सत्थवाहे तेसिं कोडुंबियाणं अंतिए एयमढे सोच्चा जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता ण्हाए जाव मित्तणाइ परिवुडे चंपाए णयरीए मज्झमझेणं
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