SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපුදු जेणेव सागरदत्तस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ। तए णं सागरदत्ते सत्थवाहे जिणदत्तं स०. एज्जमाणं पासइ २त्ता आसणाओ अब्भुढेइ २ त्ता आसणेणं उवणिमंतेइ २ त्ता आसत्थं वीसत्थं सुहासणवरगयं एवं वयासी - भण देवाणुप्पिया! किमागमणपओयणं? भावार्थ - जिनदत्त सार्थवाह उन कौटुंबिक पुरुषों से यह सुनकर अपने घर आया। स्नानादि किया। मित्र, स्वजातीयजन आदि से घिरा हुआ, वह चंपानगरी के बीचोंबीच होता हुआ, सागरदत्त के घर आया। सार्थवाह सागरदत्त ने जब जिनदत्त सार्थवाह को आते हुए देखा, वह आसन से खड़ा हुआ, बैठने का आसन दिया। सुखासन में बैठने के अनंतर सागरदत्त ने जिनदत्त से कहा - देवानुप्रिय! आपके आने का क्या प्रयोजन है? (४१) ' तए णं से जिणदत्ते सत्थवाहे सागरदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी - एवं खलु 'अहं देवाणुप्पिया! तव धूयं भद्दाए अत्तियं सूमालियं सागरस्स भारियत्ताए वरेमि। जइ णं जाणह देवाणुप्पिया! जुत्तं वा पत्तं वा सलाहणिज्जं वा सरिसो वा संजोगो ता दिज्जउ णं सूमालिया सागर(दारग)स्स। तए णं देवाणुप्पिया! किं दलयामो सुंकं सूमालियाए? भावार्थ - जिनदत्त ने सार्थवाह सागरदत्त से कहा - देवानुप्रिय! तुम्हारी पुत्री, भद्रा की आत्मजा सुकुमालिका को मेरे पुत्र सागर के लिए भार्या के रूप में चाहता हूँ। देवानुप्रिय! यदि आप इसे उपयुक्त, समुचित और श्लाघनीय समझें और यदि दोनों के लिए कुलानुरूप, गुणानुरूप, सदृश संयोग माने तो सुकुमालिका सागर के लिए दें। देवानुप्रिय! उसके लिए शुल्क रूप में हम क्या हैं? विवाह की शर्त (४२) तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे जिणदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी - एवं खलु . देवाणुप्पिया! सूमालिया दारिया मम एगा एगजाया इट्ठा ५. जाव किमंग पुण पासणयाए। तं णो खलु अहं इच्छामि सूमालियाए दारियाए खणमवि विप्पओगं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy