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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र RECEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEECccccccccccx
भावार्थ - उस बालिका के जन्म के पश्चात् बारह दिन व्यतीत हो जाने पर माता-पिता ने उसका गुणानुरूप, गुण निष्पन्न नाम रखते हुए कहा - हमारी यह कन्या हाथी के तालु के सदृश सुकुमार है, इसलिए हम इसका नाम सुकुमालिका रखें। तदनुसार उन्होंने उसका नाम सुकुमालिका रखा।
तए णं सा सूमालिया दारिया पंचधाई परिग्गहिया तंजहा. - खीरधाईए जाव गिरिकंदरमल्लीणा इव चंपकलया णिव्वाए णिव्वाघायंसि जाव परिवड्डइ। तए णं सा सूमालिया दारिया उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठ सरीरा जाया यावि होत्था। ..
भावार्थ - वह कन्या सुकुमालिका दूध पिलाने वाली आदि पाँच धायमाताओं द्वारा पालित-पोषित होती हुई, तेजवायु से तथा अन्यान्य बाधाओं से रहित, गिरी कंदरा में उत्पन्न चंपकलता की तरह वह सुख पूर्वक बढने लगी। वह सुकुमालिका बचपन को पार कर रूप- . लावण्यमय यौवन को प्राप्त हुई। उसकी सम्पूर्ण देह सौंदर्य युक्त थी।
सार्थवाह जिनदत्त .
__(३७) तत्थ णं चंपाए णयरीए जिणदत्ते णामं सत्थवाहे अड्ढे०। तस्स णं जिणदत्तस्स भद्दा भारिया सूमाला इट्ठा जाव माणुस्सए कामभोए पच्चणुब्भवमाणा विहरइ। तस्स णं जिणदत्तस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सागरए णामं दारए सुकुमाले जाव सूरूवे।
भावार्थ - उसी चंपानगरी में जिनदत्त नामक एक अन्य धनाढ्य सार्थवाह निवास करता था। उसकी भार्या का नाम भद्रा था। वह बहुत ही सुकुमार यावत् जिनदत्त को प्रिय थी। वे मनुष्य जीवन संबंधी सुखों का आनंद लेते हुए रहते थे। जिनदत्त की भद्रा भार्या की कोख से उत्पन्न सागर नामक पुत्र था। उसके हाथ-पैर आदि सुकुमार थे यावत् वह रूपवान् था।
(३८) तए णं से जिणदत्ते सत्थवाहे अण्णया कयाइ सयाओ गिहाओ पडिणिक्खिमइ
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