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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - सार्थवाह कन्या के रूप में जन्म १५३ comaamcomccccccccccccccccDECEREGERMEDICINEMIERIKANERIEKSEEK
शब्दार्थ - उरएसु - उरग-सरिसृप या पेट के बल चलने वाले प्राणियों में, खहयर विहाणाई - खेचर-पक्षियों की योनियों में, खरबायरपुढविकाइय - कठोर, बादर पृथ्वीकाय के रूप में, अणेगसय-सहस्सखुत्तो - लाखों बार।
भावार्थ - इसके पश्चात् वह वहाँ से निकल कर सरीसृप योनियों में उत्पन्न हुई। यहाँ का विस्तृत वृत्तान्त भगवती सूत्र में वर्णित गोशालक के वृत्तांत की तरह है यावत् वह रत्नप्रभा आदि सातों नरक भूमियों में उत्पन्न हुई। वहाँ से निकल कर वह अनेक गगनचारी पक्षियों की योनि में उत्पन्न हुई यावत् उसके बाद वह कठोर बादर पृथ्वीकाय में लाखों बार उत्पन्न हुई।
सार्थवाह कन्या के रूप में जन्म
- सा णं तओऽणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए णयरीए सागरदत्तस्स सत्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि दारियत्ताए पच्चायाया। तए णं सा भद्दा सत्थवाही णवण्हं मासाणं दारियं पयाया सुकुमाल कोमलियं गयतालुयसमाणं।
शब्दार्थ - गयतालुयसमाणं - हाथी के तालु के समान। .. भावार्थ - पृथ्वीकाय से निकलकर वह इसी जंबूद्वीप में, भारत वर्ष में, सागरदत्त श्रेष्ठी की भद्रा नामक भार्या की कोख में कन्या के रूप में आई। नौ मास पूर्ण होने पर भद्रा सार्थवाही ने कन्या को जन्म दिया। वह कन्या हाथी के तालु के समान अत्यंत सुकुमार तथा कोमल अंग युक्त थी।
. (३५) तीसे दारियाए णिव्वत्ते बारसाहियाए अम्मापियरो इमं एयारूवं गोण्णं गुणणिप्फण्णं णामधेज्जं करेंति-जम्हा णं अम्हं एसा दारिया सुकुमाला गयतालुयसमाणा तं होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए णामधेज्जे सुकुमालिया २। तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो णामधेज्जं करेंति सूमालियत्ति।
शब्दार्थ - गोण्णं - गुणानुरूप।
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