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अपरकंका नामक सोलहवां अध्ययन - स्थविर धर्मघोष का आगमन १३६ acceOORDEReacocococcanceDECECEDEccccccccccce बहुसंभारणेहकयं एगंते गोवेत्तए अण्णं सालइयं महुरालाउयं जाव णेहावगाढं उवक्खडेत्तए। एवं संपेहेइ २ त्ता तं सालइयं जाव गोवेइ २ अण्ण सालइयं महुरालाउयं उवक्खडेउ।
शब्दार्थ - जाउयाओ - यालकाएँ-देवरानियाँ।
भावार्थ - यदि मेरी देवरानियों को इस बात का पता चलेगा तो वे निंदा करेंगी। अतएव जब तक वे इसे जान पाए, उससे पूर्व ही घृत एवं मसालों से तैयार किए गए इस खारे तूंबे को एकांत में छिपा दूं तथा दूसरे मीठे तूंबे को यावत् घृत एवं मसालों के साथ तैयार करूँ। यों सोचकर उसने उस तूंबे को यावत् गुप्त रूप में छिपा दिया और दूसरे मीठे तूंबे को तैयार किया।
(८) ___ उवक्खडेउ तेसिं माहणाणं ण्हायाणं जाव सुहासणवरगयाणं तं विपुलं असणं ४ परिवेसेइ। तए णं ते माहणा जिमियभुत्तुत्त रागया समाणा आयंता चोक्खा परम सुइभूया सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था। तए णं ताओ माहणीओ ण्हायाओ जाव विभूसियाओ तं विपुलं असणं ४ आहारेंति २ त्ता जेणेव सयाई २ गिहाई तेणेव उवागच्छति २त्ता सकम्मसंपउत्ताओ जायाओ। . भावार्थ - स्नानादि से निवृत्त होकर सुखासनों पर बैठे हुए ब्राह्मण बंधुओं को नागश्री ने चतुर्विध आहार परोसा। इन्होंने आनंद पूर्वक भोजन किया, हाथ-मुँह धोकर शुद्धि की एवं अपने-अपने कार्यों में संलग्न हो गए।
ब्राह्मण-पत्नियाँ जो स्नानादि कर यावत् वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर वहाँ आई थीं, उनको भी अशन-पान आदि का भोजन कराया। भोजन कर वे भी अपने-अपने घर चली गईं। स्थविर धर्मघोष का आगमन
(६) तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा णाम थेरा जाव बहुपरिवारा जेणेव चंपा णामं णयरी जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता अहापडिरूवं जाव विहरंति। परिसा णिग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया।
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