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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र saenacaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaDHIRececace
भावार्थ - उस काल उस समय धर्म घोष नामक स्थविर अनगार यावत् अपने बहुत से साधुओं के साथ चंपानगरी में आए। सुभूमिभाग नामक उद्यान में यथा प्रति रूप, शास्त्रानुमोदित, विहित स्थान प्राप्त कर वहाँ विराजित हुए। धर्म श्रवणार्थ परिषद् आई। उन्होंने धर्मोपदेश दिया। परिषद् सुनकर वापस लौट गई।
(१०) तए णं तेसिं धम्मघोसाणं थेराणं अंतेवासी धम्मरुई णामं अणगारे ओराले जाव तेउलेस्से मासं मासेणं खममाणे विहरइ। तए णं से धम्मरुई अणगारे मासखमण पारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ २ ता बीयाए पोरिसीए एवं जहा गोयमसामी तहेव उग्गाहेइ २ त्ता तहेव धम्मघोसं थेरं आपुच्छइ जाव चंपाए णयरीए उच्चणीय-मज्झिमकुलाई जाव अडमाणे जेणेव. णागसिरीए माहणीए गिहे तेणेव अणुपविठे।
शब्दार्थ - उग्गाहेइ - पात्र लिए, तेउलेस्से - तेजोलेश्या।
भावार्थ - स्थविर धर्मघोष के धर्मरुचि अनगार नामक शिष्य था, जो उदार चेता यावत् घोर तपस्वी थे। तपस्या के कारण उनको विपुल तेजोलेश्या प्राप्त थी जो अनेक योजन परिमित क्षेत्र स्थित वस्तुओं को भी भस्मसात करने में समर्थ थी। वे मासखमण तपश्चरण में निरत थे। एक बार धर्मरुचि अंणगार ने अपने मासखमण पारणे के दिन पहले प्रहर में स्वाध्याय किया, दूसरे प्रहर आदि में सूत्रार्थ चिन्तन रूप ध्यान किया इत्यादि वर्णन गौतम स्वामी के वृत्तांत की तरह यहाँ ग्राह्य है। तीसरे प्रहर में अपने पात्रों का प्रतिलेखन कर, उन्हें ग्रहण किया एवं अपने गुरुवर्य धर्मघोष अनगार के पास आए। उनसे भिक्षार्थ जाने की आज्ञा प्राप्त की यावत् चंपा नगरी में उच्च, नीच मध्यम कुलों में भिक्षा लेने हेतु घूमते-घूमते नागश्री नामक ब्राह्मणी के घर पहुँचे। .
नागश्नी का दूषित दान
(११) तए णं सा णागसिरी माहणी धम्मरुई एज्जमाणं पासइ २ ता तस्स सालइयस्स तित्तकडुयस्स बहु० जेहाव गाढस्स णिसिरणट्ठयाए हट्ठतुट्ठा (उट्ठाए)
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