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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපුෂ්පපපපපපපුළළපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපු
(१६) तए णं से कणगकेऊ राया हट्टतुट्ठ० धणस्स सत्थवाहस्स तं महत्थं ३ जाव पडिच्छइ २ त्ता धण्णं सत्थवाहं सक्कारेइ सम्माणेइ स० २त्ता उस्सुक्कं वियरइ २ ता पडिविसज्जेइ भंडविणिमयं करेइ २ ता पडिभंडं गेण्हइ २ ता सुहं सुहेणं जेणेव चंपा णयरी तेणेव उवागच्छइ २ ता मित्तणाइ अभिसमण्णागए विपुलाई माणुस्सगाई जाव विहरइ।
- भावार्थ - राजा कनककेतु उपहार प्राप्त कर हर्षित एवं परितुष्ट हुआ। उसने धन्य सार्थवाह सै. महत्त्वपूर्ण यावत् बहुमूल्य उपहार स्वीकार किए। धन्य सार्थवाह का सत्कार, सम्मान किया और उसका शुल्क-चुंगी या व्यापारिक कर माफ कर दिया। ऐसा कर उसे वहाँ से विदा किया। धन्य सार्थवाह ने अपने माल का विनिमय किया-अपने माल के बदले दूसरा माल लिया तथा सुखपूर्वक चंपानगरी की ओर रवाना हुआ। वहाँ पहुँचा। मित्र, स्वजातीयजन आदि. से मिला। उन सबके साथ मनुष्य जीवन संबंधी सुखभोग करता हुआ रहने लगा।
- (१७) . . तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरागमणं। धणे धम्मं सोच्चा जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठावेत्ता जाव पव्वइए सामाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि जाव मासियाए संलेहणाए० जाव अण्णयरेसु देवत्ताए उववण्णे महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव अंतं करेहिइ। ___ भावार्थ - उस काल, उस समय चंपा नगरी में स्थविर मुनियों का आगमन हुआ। धन्य सार्थवाह उनके दर्शन-वंदन हेतु गया। उसने उनका धर्मोपदेश सुना। अपने बड़े पुत्र को कुटुंब का उत्तरदायित्व सौंपकर वह प्रव्रजित हो गया। उसने सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। बहुत वर्ष पर्यन्त साधु-जीवन का पालन किया। अंत में उसने एक मास की संलेखना कर, साठ भक्तों का छेदन कर, कर्म क्षय करते हुए प्राण त्याग किये। वह किसी देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुआ, आयुष्य पूर्ण कर वहाँ से च्यवन कर महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा यावत् आवागमन का अंत करेगा।
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