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________________ नंदी फल नामक पन्द्रहवां अध्ययन - धन्य का अहिच्छत्रा आगमन, क्रय-विक्रय १३५ XaaDKIKIGEOGGERIEOCOGEEEEEEEEEEEEEEEEEEccccccccc (१८) एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं पण्णरसमस्स णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते तिबेमि। भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी बोले - हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पन्द्रहवें ज्ञाताध्ययन का यह अर्थ प्ररूपित किया है। जैसा मैंने श्रवण किया वैसा कहता हूँ। गाहाओ - चंपा इव मणुयगई धण्णोव्व भयवं जिणो दएक्करसो। अहिछत्ताणयरिसमं इह णिव्वाणं मुणेयव्वं ॥१॥ घोसणया इव तित्थंकरस्स सिवमग्गदेसणमहग्धं । चरगाइणोव्व इत्थं सिवसुहकामा जिया बहवे॥२॥ णंदिफलाइव्व इहं सिवपह-पडिवण्णगाण विसया उ। तब्भक्खणाओ मरणं जह तह विसएहिं संसारो॥ ३॥ तव्वज्जणेण जह इट्ठपुरगमो विसयवज्जणेण तहा। परमाणंद-णिबंधण-सिवपुर-गमणं मुणेयव्वं ॥ ४॥ ॥ पण्णरसमं अज्झयणं समत्तं॥ । गाथा-भावार्थ - मनुष्य गति यहाँ चंपानगरी से, परम दयालु जिनेश्वर देव धन्य सार्थवाह से उपमित किए गए हैं तथा अहिच्छत्रा नगरी को निर्वाण के सदृश जानना चाहिए॥ १॥ - तीर्थंकर देव की मोक्षमार्ग मूलक महत्त्वपूर्ण देशना यहाँ सार्थवाह की घोषणा द्वारा उपमित की गई है। सार्थवाह के साथ अटवी में जाने वाले लोग शिवसुख की कामना वाले जीवों के सदृश हैं॥ २॥ ____ उस वन में स्थित नंदीफल मोक्ष सुख के परिपंथी या प्रतिकूल विषय हैं। उनको खाने से प्राप्त हुआ 'मरण' विषय भोग युक्त संसार के समान है॥ ३॥ ___ जिन्होंने नंदीफल का वर्जन किया, वे अपने अभीप्सित नगर में चले गए। इसे वासना रहित, परमानंदप्रदायक शिवपुर मोक्ष गमन सदृश समझना चाहिए॥ ४॥ . ॥ पन्द्रहवां अध्ययन समाप्त। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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