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नंदी फल नामक पन्द्रहवां अध्ययन - धन्य का अहिच्छत्रा आगमन क्रय-विक्रय १३३ GoGoGeox
भावार्थ उनमें से कतिपय पुरुष, जिन्होंने धन्य सार्थवाह की इस बात पर श्रद्धा एवं प्रतीति नहीं की थी, नंदी फल के वृक्षों के पास आए। उनके मूल यावत् फल आदि का आहार किया, उनके नीचे विश्राम किया। खाते समय तो उनको वे फल आदि सुखप्रद प्रतीत हुए किंतु परिपाक होने के पश्चात् उन्होंने उनकी जान ले ली।
(१४)
एवामेव समणाउसो! जो अम्हं णिग्गंथो वा २ पव्वइए पंचसु कामगुणेसु सज्जइ जाव अणुपरियट्टिस्सइ जहा व ते पुरिसा ।
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भावार्थ - हे आयुष्मन् श्रमणो! इसी प्रकार जो निग्रंथ या निर्ग्रथिनी प्रव्रजित होकर पाँच इन्द्रिय भोगों में आसक्त हो जाते हैं यावत् वे पूर्वोक्त दुःखों को पाते हुए चतुर्गतिमय संसार रूप घोर कांतार में भटकते रहते हैं।
धन्य का अहिच्छत्रा आगमन क्रय-विक्रय
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(१५)
तणं से धणे. सगडी सागडं जोयावेइ २ त्ता जेणेव अहिच्छत्ता णयरी तेणेव उवागच्छइ २ त्ता अहिच्छत्ताए णयरीए बहिया अग्गुज्जाणे सत्थणिवेसं करेइ २ तासगडी सांगडं मोयावेइ । तए णं से धणे सत्थवाहे महत्थं ३ रायारिहं पाहुडं गेहइ २ ता बहुपुरिसेहिं सद्धिं संपरिवुडे अहिच्छत्तं णयरं मज्झं मज्झेणं अणुविस २ ता जेणेव कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता करयल जाव वद्धावेइ २ त्ता तं महत्थं ३ पाहुडं उवणे |
भावार्थ - तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह ने अपने गाड़ी - गाड़े जुतवाए एवं अहिच्छत्रा नगरी पहुँचा । नगरी के बाहर प्रधान उद्यान में अपना पड़ाव डाला, गाड़ी गाड़े खुलवाए। फिर उसने महत्त्वपूर्ण, बहुमूल्य, बड़े लोगों, राजाओं को भेंट करने योग्य उपहार लिए। बहुत से पुरुषों से घिरा हुआ, वह अहिच्छत्रा नगरी के बीचोंबीच होता हुआ, राजा कनककेतु जहाँ था, वहाँ पहुँचा ।
उसने हाथ जोड़ कर यावत् मस्तक पर अंजलि लगाकर राजा को वर्धापित किया तथा महत्त्वपूर्ण उपहार भेंट किए।
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