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________________ नंदी फल नामक पन्द्रहवां अध्ययन - धन्य सार्थवाह की व्यापारार्थ यात्रा १२६ NOCEERIEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEcoex तए णं (से) तेसिं कोडुंबिय(घोस)पुरिसाणं अंतिए एयमढे सुच्चा चंपाए णयरीए बहवे चरगा य जाव गिहत्था य जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छंति। तए णं धणे सत्थवाहे तेसिं चरगाण य जाव गिहत्थाण य अच्छत्तगस्स छत्तं दलयइ जाव पत्थयणं दलाइ २ एवं वयासी - गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! चंपाए णयरीए बहिया अग्गुज्जाणंसि ममं पडिवालेमाणा-चिट्ठह। शब्दार्थ - पडिवालेमाणा - प्रतीक्षा करते हुए। .. . भावार्थ - कौटुंबिक पुरुषों द्वारा की गई इस घोषणा को सुनकर बहुत से चरक यावत् गृहस्थ धन्य सार्थवाह के आवास पर आए। धन्य सार्थवाह ने चरक यावत् गृहस्थ सभी को जिनके पास छत्र नहीं थे, उन्हें छत्र दिए यावत् पाथेय दिया। वैसा कर वह बोला - देवानुप्रियो! चंपा नगरी के बाहर, मुख्य उद्यान में मेरी प्रतीक्षा करते हुए ठहरो। (८) - तए णं ते चरगा य० धणेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा जाव चिट्ठति। तए णं धणे सत्थवाहे सोहणंसि तिहिकरणणक्खत्तंसि विउलं असणं ४ उवक्खडावेइ २ त्ता मित्तणाई आमंतेइ २ त्ता भोयणं भोयावेइ २ ता आपुच्छइ २त्ता सगड़ी सागडं जोयावेइ २त्ता चंपाणयरीओ णिग्गच्छद० णाइविप्पगिट्टेहिं अद्धाणेहिं वसमाणे २ सुहेहिं वसहिपायरासेहिं अंगं जणवयं मज्झं मज्झेणं जेणेव देसग्गं तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सगडी सागडं मोयावेइ २त्ता सत्थणिवेसं करेइ २त्ता कोडुंबिय पुरिसे सद्दावेइ २त्ता एवं वयासी - ___ शब्दार्थ - णाइविप्पगिट्टेहिं - अतिदूर नहीं-यथोचित दूरी पर, अद्धाणेहिं वसमाणे - मार्ग में पड़ाव डालते हुए, पायरासेहिं - प्रातःकालीन अल्पाहार, देसग्गं - देश की सीमा, सस्थणिवेसं - काफिले का ठहराव । __ 'भावार्थ - तब चरक यावत् गृहस्थादि सभी सार्थवाह द्वारा यों कहे जाने पर यावत् मुख्य उद्यान में, यथा स्थान रुक गए। धन्य सार्थवाह ने उत्तम तिथि, करण एवं मुहर्त में विपुल अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य आदि तैयार करवाया। मित्र, स्वजातीयजन, परिजन आदि को आमंत्रित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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