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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපුසසුපසපයපුපුපුසසසසසසුපළපුපුසසුපුපුපාපපපපපපපපපෑ
शब्दार्थ - चरए - चरक मतानुयायी (विचरणशील) भिक्षु, चीरिए - फटे-पुराने जुड़े हुए वस्त्र धारण करने वाला, भिच्छुण्डे - दूसरे के द्वारा आनीत भिक्षा-भोजी, पंडुरंगे - भस्मलिप्त शरीर युक्त, गोयमे - बेल को साथ लिए भिक्षाटन करने वाले, गोवतीए - गोचर्यानुगामी-गाय की चर्चा का अनुसरण करने वाला, अविरुद्ध - विनयवान्-विनयवादी, विरुद्ध - अक्रियावादी, वुड्डसावग - वृद्ध श्रावक, रत्तपड - रक्तपट-गैरिक वस्त्रधारी परिव्राजक, पासंडत्थे - इतरमत अनुयायी, उवाहणाओ - उपानह-जूते, अपत्थेयणस्स - पाथेय रहित के लिए, पक्खेवं - पूर्ति द्रव्य, पडियस्स - गिरे हुए का, भग्गलुग्गसाहेजं - हाथ पैर आदि टूटे हुए जनों की चिकित्सारूप सहायता। ___ भावार्थ - देवानुप्रियो! चंपा नगरी के तिराहों, चौराहों, चौकों और मार्गों पर ऐसी घोषणा करो- देवानुप्रिय! धन्य सार्थवाह विपुल विक्रेय सामग्री लेकर व्यापार हेतु अहिच्छत्रानगरी जा रहा है। कोई भी चरक, चीरिक, चर्म खंडिक, अन्य द्वारा आनीत भिक्षासेवी, भस्मलिप्त शरीर वाले, वृषभ के साथ भिक्षाटन करने वाले, गोव्रती, गृहधर्मी, विनयवादी, अक्रियावादी, वृद्ध श्रावक, गैरिक वस्त्रधारी संन्यासी, इतरेतर मतानुयायी, गृहस्थ इत्यादि में जो भी धन्य सार्थवाह के साथ अहिच्छत्रा नगरी में जाना चाहते हों, उनमें जिनके पास छाते नहीं होंगे, उन्हें छत्र, पथ्य रहितों को पथ्य, पादरक्षिका रहितों को पादरक्षिका, जलपात्र रहित को जल पात्र, पाथेयरहित को पाथेय देगा तथा जिनको और भी जिस किसी वस्तु की कमी होगी, उन्हें धन्य सार्थवाह पूरा करेगा। यात्रा के बीच दुर्घटना वश अंग भंग एवं रुग्णजनों की चिकित्सा व्यवस्था करेगा तथा सुखपूर्वक सभी को अहिच्छत्रा नगरी पहुँचायेगा। दो बार-तीन बार यह घोषणा करो एवं मेरे आज्ञानुरूप किए जाने की सूचना दो।
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव एवं वयासी - हंदि सुणंतु भगवंतो चंपाणयरोवत्थव्वा बहवे चरगा य जाव पच्चप्पिणंति।
भावार्थ - तदनंतर कौटुंबिक पुरुषों ने यावत् सार्थवाह के आदेशानुसार घोषणा करते हुए कहा - चंपानगरी में रहने वाले बहुत से चरक यावत् गृहस्थ आदि आप सभी महानुभाव सुनो यावत् धन्य सार्थवाह के साथ अहिच्छत्रा नगरी की यात्रा पर चलो। ऐसा कर वे वापस लौटे, सार्थवाह को सूचित किया।
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