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नंदी फल नामक पन्द्रहवां अध्ययन - धन्य सार्थवाह की व्यापारार्थ यात्रा
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धन्य सार्थवाह की व्यापारार्थ यात्रा
(४) तए णं तस्स धण्णस्स सत्थवाहस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पजित्था-सेयं खलु मम विपुलं पणियभंडमायाए अहिच्छत्तं णयरिं वाणिजाए गमित्तए। एवं संपेहेइ २ त्ता गणिमं च ४ चउव्विहं भंडं गेण्हइ० सगडीसागडं सज्जेइ २ त्ता सगडीसागडं भरेइ २ त्ता कोडुंबिय पुरिसे. सद्दावेइ २त्ता एवं वयासी
भावार्थ - किसी एक दिन आधी रात के समय धन्य सार्थवाह के मन में ऐसा विचार, चिन्तन, संकल्प उत्पन्न हुआ। मेरे लिए यह श्रेयस्कर है कि मैं विपुल, विक्रेय, विविध सामान लेकर वाणिज्य हेतु अहिच्छत्रा नगरी में जाऊं। यह सोचकर उसने गणिम, धरिम, मेय एवं परिच्छेद्य-चार प्रकार का सामान लिया, गाड़े - गाड़ी तैयार करवाए, उन पर माल लदवाया तथा कौटुंबिक पुरुषों को बुलाकर कहा।
. गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! चंपाए सिंघाडग जाव पहेसु (एवं वयह) एवं खलु देवाणुप्पिया! धणे सत्थवाहे विपुले पणिय० इच्छइ अहिच्छत्तं णयरिं वाणिज्जाए गमित्तए। तं जो णं देवाणुप्पिया! चरए वा चीरिए वा चम्मखंडिए वा भिच्छुडे वा पंडुरगे वा गोयमे वा गोवतीए वा गिहिधम्मे वा गिहिधम्मचिंतए वा अविरुद्धविरुद्ध-वुड्डसावगरत्तपडणिग्गंथप्पभिइपासंडत्थे वा गिहत्थे वा तस्स णं धण्णेणं सद्धिं अहिच्छत्तं णयरिं गच्छइ तस्स णं धणे अच्छत्तगस्स छत्तगं दलायइ अणुवाहणस्स उवाहणाउ दलयइ अकुंडियस्स कुंडियं दलयइ अपत्थयणस्स पत्थयणं दलयइ अपक्खेवगस्स पक्खेवं दलयइ अंतरा वि य से पडियस्स वा भग्गलुग्गसाहेजं दलयइ सुहंसुहेण य णं अहिच्छत्तं संपावेइ त्ति कटु दोच्चंपि तच्चपि घोसेह २ त्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।
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