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तेतली पुत्र नामक चौदहवां अध्ययन - तेतली पुत्र को केवलज्ञान
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श्रामण्य पर्याय का पालन किया। अंत में एक मास की संलेखना कर देह त्याग कर महाशुक्र कल्प में देव के रूप में उत्पन्न हुआ। तेतली पुत्र को केवलज्ञान
(५४) तए णं हं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं इहेव तेयलिपुरे तेयलिस्स अमच्चस्स भद्दाए भारियाए दारगत्ताए पच्चायाए। तं सेयं खलु मम पुव्वदिट्ठाई महव्वयाई सयमेव उवसंपजित्ताणं विहरित्तए। एवं संपेहेइ २ त्ता सयमेव महव्वयाइं आरुहेइ २ त्ता जेणेव पमयवणे उजाणे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टयंसि सुहणिसण्णस्स अणुचिंतेमाणस्स पुव्वाहीयाई सामाइयमाइयाई चोद्दसपुव्वाइं सयमेव अभिसमण्णागयाइं। तए णं तस्स तेयलिपुत्तस्स अणगारस्स सुभेणं परिणामेणंजाव तयावरणिजाणं कम्माणं खओवसमेणं कम्मरय-विकरणकर अपुव्वकरणं पविट्ठस्स केवलवरणाण दंसणे समुप्पण्णे।
शब्दार्थ. - पच्चायाए - प्रत्यायात-जन्मा, पुव्वदिट्ठाई :- पूर्व भव में परिपालित, पुव्वाहीयाई - पूर्व भव में अधीन-पठित, अभिसमण्णागयाइं - स्मृति में आ गए, विकरणकरंमिटाने वाले। ___भावार्थ - तत्पश्चात् आयुक्षय होने के उपरांत मैं उस देवलोक से च्यवन कर, यहां तेतलीपुर में भद्रा भार्या की कोख से तेतली नामक अमात्य के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। अतः मेरे लिए यह श्रेयस्कर है कि मैं पूर्वभव में स्वीकृत, परिपालित महाव्रतों को स्वयं ही स्वीकार कर जीवनयापन करूँ। यों सोच कर वह स्वयं महाव्रतों पर आरूढ हुआ, महाव्रत स्वीकार किये। प्रमदवन नामक उद्यान में आया। आकर अशोक वृक्ष के नीचे पृथ्वी शिलापट्ट पर सुखासन में स्थित हुआ, चिंतन, अनुचिंतन में संलग्न होते हुए उसको पूर्व भव में अधीत सामायिक आदि चवदह पूर्व स्मृति में आ गए। तदनंतर अनगार तेतलीपुत्र शुभ परिणाम यावत् प्रशस्त अध्यवसाय, विशुद्ध होती लेश्याएं, ज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से कर्म रज विनाशक अपूर्वकरण-अष्टम् गुणस्थान, क्षपक श्रेणी पर आरूढ हुआ। क्रमशः उसने चारों घाति कर्मों का नाश कर अनुत्तर (श्रेष्ठ) केवल ज्ञान, केवल दर्शन प्राप्त किया।
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