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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
स्वदेश गमन, भूखे के लिए अन्न, प्यासे के लिए पानी, रोगी के लिए दवा, मायावी के लिए गुप्त स्थान, दोषारोपित पुरुष के लिए निराकरण द्वारा पुनः विश्वास पैदा करना, मार्ग में थके व्यक्ति के लिए सवारी द्वारा गमन, समुद्र आदि को पार करने के लिए जहाज या नौका का मिलना, शत्रु पर आक्रमण करने के लिए उद्यत पुरुष के लिए सहायकों का होना। किन्तु शांत-क्षमा युक्त, दांत, जितेन्द्रिय पुरुष के लिए इन सबका कोई भय नहीं होता।
(५२) . तए णं से पोट्टिले देवे तेयलिपुत्तं अमच्चं एवं वयासी-सुटु णं तुमं तेयलिपुत्ता! एयमढे आयाणिहि त्ति कट्ट दोच्वंपि तच्चपि एवं वयइ २ त्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए।
शब्दार्थ - आयाणिहि - ज़ानो और क्रियान्वित करो। . भावार्थ - पोट्टिल देव ने अमात्य से कहा - तेतली पुत्र! तुम्हारे लिये यह श्रेयस्कर है। . तुम इस तथ्य को जानो और क्रियान्वित करो। दो बार, तीन बार कह कर वह देव जिस दिशा से आया था, उसी ओर लौट गया। तेतलीपुत्र को जातिस्मरण ज्ञान
(५३) तए णं तस्स तेयलिपुत्तस्स सुभेणं परिणामेणं जाईसरणे समुप्पण्णे। तए णं तस्स तेयलिपुत्तस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए० समुप्पण्णे - एवं खलु अहं इहेव जंबुद्दीवे २ महाविदेहे वासे पोक्खलावई विजए पोंडरीगिणीए रायहाणीए महापउमे णामं राया होत्था। तए णं (अ)हं थेराणं अंतिए मुंडे भवित्ता जाव चोद्दसपुव्वाइं० बहूणि वासाणि सामण्ण परियाए पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए महासुक्के कप्पे देवे। ___भावार्थ - तेतली पुत्र को शुभ परिणामों के कारण जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। उसके मन में यह भाव उदित हुआ यावत् चिंतन आया कि मैं इसी जंबू द्वीप में महाविदेह क्षेत्र में पुष्कलावती विजय में पुण्डरीकिणी राजधानी में महापद्म नामक राजा था। वहाँ मैं स्थविर मुनियों के पास मुण्डित यावत् प्रव्रजित हुआ। चवदह पूर्वो का अध्ययन किया। बहुत वर्षों तक
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