SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___ तेतली पुत्र नामक चौदहवां अध्ययन - पोटिल देव द्वारा प्रतिबोधित १२१ HAMARRRRRRRRRIORMEDICIRRORBABERHEAPEVERED RameramawereREE nाका पोटिल देव द्वारा प्रतिबोधित (५०) तए णं से पोट्टिले देवे पोट्टिलारूवं विउव्वइ २ ता तेयलिपुत्तस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी-हं भो तेयलिपुत्ता! पुरओ पवाए पिट्ठओ हत्थिभयं दुहओ अचक्खुफासे मज्झे सराणि वरिसयं (पतं) ति, गामे पलित्ते रणे झियाइ रण्णे पलित्ते गामे झियाइ, आउसो तेयलिपुत्ता! कओ वयामो? । शब्दार्थ - पवाए - गर्त-गड्ढा, अचक्खुफासे - अचक्षुस्पर्श-अंधकार, सराणि - बाण, पलत्ते - प्रज्वलित हो जाने पर, रण्णे - अरण्य। - भावार्थ - पोट्टिल देव ने विक्रिया द्वारा पोट्टिला का रूप बनाया। तेतली पुत्र से न अधिक दूर न अधिक समीप स्थित होते हुए कहा - तेतलीपुत्र आगे गड्ढा हो, पीछे हाथी का भय हो, दोनों और अंधेरा हो, मध्य में बाणों की वर्षा हो रही हो, गाँव में आग लगी हो, यह देखकर कोई व्यक्ति जंगल में जाने का सोचे तथा जंगल में लगी आग को देखकर यदि ग्राम में जाने का सोचे तो तेतली पुत्र! जरा सोचो, जब दोनों ओर ही आग लगी हो तो हम कहाँ जाएं? . . (५१) . ... तए णं से तेयलिपुत्ते पोटिलं एवं वयासी-भीयस्स खलु भो! पव्वजा सरणं, उक्कंठियस्स सदेसगमणं छुहियस्स अण्णं तिसियस्स पाणं आउरस्स भेसजं माइयस्स रहस्सं अभिजुत्तस्स पच्चयकरणं अद्धाण परिसंतस्स वाहणगमणं तरिउकामस्स पवहणं किच्चं परं अभिओजिउकामस्स सहायकिच्चं, खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स एत्तो एगमवि ण भवइ। ____ शब्दार्थ - उक्कंठियस्स - उत्कंठित, आउरस्स - रोगी के लिए, माइयस्स - मायावीछली के लिए, अभिजुत्तस्स - दोषापवाद युक्त के लिए, पच्चयकरणं - निराकरण द्वारा प्रतीति उत्पन्न करना, अद्धाणपरिसंतस्स - मार्ग में थके हुए के लिए, परं अभिओजिउकामस्स - शत्रु पर आक्रमण करने के लिए उद्यत पुरुष के लिए। भावार्थ - तेतली पुत्र ने पोट्टिल देव से कहा - संसार भय से युक्त व्यक्ति के लिए निश्चय ही मुनि दीक्षा शरणभूत है। वह उसी तरह है, जिस तरह चिर प्रवासी व्यक्ति के लिए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy