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________________ १०६ பாமகாலைன் மகனாக IBRARAMBIRamesURUSum 0RRRRRomamareename ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SEEDOSCOREDEEEEEEEEEER आर्या सुव्रता का पदार्पण (२८) तेणं कालेणं तेणं समएणं सुव्वयाओ णामं अज्जाओ ईरियासमियाओ जाव ' गुत्तबंभयारिणीओ बहुस्सुयाओ बहुपरिवाराओ पुव्वाणुपुव्विं (चरमाणीओ) जेणामेव तेयलिपुरे णयरे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हति । २ त्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणीओ विहरंति। भावार्थ - उस काल उस समय सुव्रता नामक आर्या, जो ईया समितिं यावत् भाषासमिति आदि सर्वविध आचार मर्यादाओं से युक्त, परम ब्रह्मचारिणी एवं बहुश्रुता थी, अपने बहुत-सी अन्तेवासिनियों के साथ क्रमशः विहार करती हुई तेतलीपुर नगर में आई। संयम एवं तप से स्वयं को आत्मानुभावित करती हुई, वहाँ अवस्थित रही। (२६) तए णं तासिं सुव्वयाणं अज्जाणं एगे संघाडए पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ जाव अडमाणीओ तेयलिस्स गिहं अणुपविट्ठाओ। तए णं सा पोट्टिला ताओ अज्जाओ एज्जमाणीओ पासइ २ त्ता हट्ट० आसणाओ अब्भुट्टेइ० वंदइ णमंसइ, वं० २ त्ता विपुलं असणं ४ पडिलाभेइ २ त्ता एवं वयासी - ___ शब्दार्थ - संघाडए - सिंघाडा-दो या तीन साध्वियों का समूह, पोरिसीए - पौरुषीप्रहर, अडमाणीओ - भिक्षार्थ घूमती हुई। भावार्थ - सुव्रता आर्या के एक सिंघाड़े ने अपनी दिनचर्यानुरूप प्रथम प्रहर में स्वाध्याय किया, दूसरे प्रहर में ध्यान किया एवं तीसरे प्रहर में उस सिघाड़े की साध्वियाँ भिक्षाटन के लिए तेतलीपुत्र के घर में प्रविष्ट हुई। पोट्टिला ने उनको आते हुए देखा तो आसन से उठी तथा उन्हें यथेष्ट चतुर्विध आहार द्वारा प्रतिलाभित किया एवं वह उनसे कहने लगी। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र के 'पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेई' के पश्चात् 'जाव' शब्द से विस्तृत पाठ का संकेत दिया गया है, जिसमें साधु-साध्वी के दैवसिक कार्यक्रम के कुछ अंश का उल्लेख है, साथ ही भिक्षा सम्बन्धी विधि का भी उल्लेख किया गया है। उस पाठ का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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