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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
रानी की बुद्धिमत्ता (१६)
तए णं तीसे पउमावई देवीए अण्णया ( कयाइ) पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवे अज्झत्थिए ४ समुप्पज्जित्था - एवं खलु कणगरहे राया रज्जे य जाव पुत्ते वियंगे जाव अंगमंगाई वियंगेइ । तं जड़ णं अहं दारयं पयायामि सेयं खलु मम तं दारगं कणगरहस्स रहस्सि (य) यं चेव सारक्खमाणीए संगोवेमाणिए विहरित्तए-त्तिकट्टु एवं संपेहेइ २ त्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं सद्दावेइ २ ता एवं वयासी
शब्दार्थ - पयायामि - जन्म दूं ।
भावार्थ - एक बार अर्द्धरात्रि के समय रानी पद्मावती के मन में ऐसा विचार उठा - राजा कनकरथ राज्य में यावत् राष्ट्र निधान आदि में अत्यधिक मूर्च्छित और आसक्त है। अतः वह पुत्रों को विकलांग बना देता है यावत् उनके अंगों को विच्छिन्न करवा देता है। अतः मैं यदि आगे को जन्म दूं तो मैं राजा कनकरथ से छिपा कर उसका संरक्षण, संगोपन करती रहूँ । यों विचार कर उसने अमात्य तेतलीपुत्र को बुलाया और कहा ।
पुत्र
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(१७)
एवं खलु देवाणुप्पिया! कणगरहे राया रज्जे य जाव वियंगेइ । तं जड़ णं अहं देवाणुप्पिया! दारगं पयायामि तए णं तुमं कणगरहस्स रहस्सिययं चेव अणुपुव्वेणं सारक्खमाणे संगोवेमाणे संवढेहि । तए णं से दाए उम्मुक्क बालभावे (जाव) जोव्वणगमणुप्पत्ते तव य मम य भिक्खाभायणे भविस्सइ । तए णं से तेयलिपुत्ते पउमावईए एयमट्टं पडिसुणेइ २ त्ता पडिगए ।
शब्दार्थ - भिक्खाभायणं - भिक्षा भाजनं - पालक - पोषक ।
भावार्थ - देवानुप्रिय ! राजा कनकरथ राज्य में यावत् राष्ट्र निधान आदि में अत्यधिक आसक्त तथा मूर्च्छित है यावत् वह इसीलिए अपने पुत्रों को विकलांग करवा देता है । अतः यदि मैं पुत्र को जन्म दूं तो तुम कनकरथ से छिपा कर क्रमशः संरक्षण, संगोपन करते हुए, उसे बड़ा करो, पालो-पोसो । जब वह शिशु बचपन को पारकर युवा हो जाएगा तब वह मेरे और तुम्हारे
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