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तेतली पुत्र नामक चौदहवां अध्ययन - सत्तालोलुप राजा कनकरथ ISBOBOO8888888
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पोट्टिला के साथ पाटे पर बैठा। जल भरे चाँदी-सोने के कलशों से अपना मार्जन - अभिषेक करवाया। वैसा कर अग्निहोत्र किया। पाणिग्रहण विधि संपन्न कर अपनी भार्या के पारिवारिक जन यावत् संबंधी आदि को विपुल अशन-पान यावत् पुष्प, अलंकार आदि द्वारा सत्कार सम्मान कर विदा किया।
(१४)
तणं से तेयलिपुत्ते पोट्टिलाए भारियाए अणुरत्ते अविरत्ते उरालाई जाव विहरड़ । शब्दार्थ - अविरत - अत्यंत अनुराग युक्त ।
भावार्थ
तदुपरांत तेतलीपुत्र अपनी पत्नी पोट्टिला में अत्यधिक आसक्त तथा अत्यंत अनुरक्त हो कर भोग भोगता हुआ रहने लगा । .
सत्तालोलुप राजा कनकरथ (१५)
तणं से कणगरहे राया रज्जे य रट्ठे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य अंतेउरे य मुच्छिए ४ जाए २ पुत्ते वियंगेइ । अप्पेगइयाणं हत्थंगुलियाओ छिंदइ अप्पेगइयाणं हत्थंगुट्ठए छिंदइ । एवं पायंगुलियाओ पायंगुट्ठए । वि कंण्णसक्कुलीए वासापुडा फालेइ अंगमंगाई वियंगे ।
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शब्दार्थ - गढिए - गडा हुआ - अति आसक्त, गिद्धे - लोलुप, अज्झोववण्णे - सर्वथा तत्परायण, वियंगेइ - विकलांग करता, छिंदड़ - छिन्न कर देता, कण्णसक्कुलीए - कान का बाह्य भाग, फालेइ - फड़वा देता, चिरवा देता ।
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भावार्थ - राजा कनकरथ अपने राज्य, राष्ट्र, सेना, वाहन, खजाना, कोठार तथा अंतःपुर में अत्यंत मूर्च्छित, आसक्त, लोलुप तथा इनमें सर्वथा रचा- पचा था ।
(कोई राजसिंहासन के योग्य न हो सके) इसलिए जो-जो पुत्र उत्पन्न होते, उनमें से किन्हीं को विकलांग करवा देता, कईयों के हाथ की अंगुलियाँ, कईयों के हाथ या पैर की अंगुलियाँ या अंगूठे कटवा देता । किन्हीं के कानों के बाह्य भाग और नथुने फड़वा देता, छिदवा देता। इस प्रकार वह सभी पुत्रों के किसी न किसी तरह अंग - विच्छिन्न करवा देता उनको विकलांग करवा देता ।
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