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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र . පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපුද ,
(११) तए णं कलायस्स मूसियारदारगस्स गिहाओ पडिणियत्तंत्ति २ ता जेणेव तेयलिपुत्ते अमच्चे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता तेयलिपुत्तं एयमढें णिवेयंति। .
भावार्थ - तदनंतर आभ्यन्तर स्थानीय पुरुष स्वर्णकार मूषिकारदारक के यहाँ से रवाना हुए, अमात्य तेतलीपुत्र के यहाँ पहुँचे और पूर्वोक्त वृत्तांत निवेदित किया। .
- भार्या-प्राप्ति
(१२) तए णं कलाए २ अण्णया कयाई सोहणंसि तिहि(करण)णक्खत्तमुहुत्तंसि पोहिलं दारियं ण्हायं सव्वालंकारविभूसियं सीयं दुरूहइ, दुरूहित्ता मित्तणाइसंपरिवुड़े साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ २ ता सव्विड्डीए ४ तेयलिपुरं णयरं मज्झमझेणं जेणेव तेयलिस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ० पोटिलं दारियं तेयलिपुत्तस्स सयमेव भारियत्ताए दलयइ। " भावार्थ - स्वर्णकार मूषिकारदारक ने एक दिन शुभ तिथि, नक्षत्र एवं मुहूर्त में अपनी पुत्री पोट्टिला को स्नान कराया, सर्व प्रकार के भूषणों से अलंकृत कर शिविका पर आरूढ़ किया।
फिर मित्रों एवं जातीय जनों से घिरा हुआ, अपने घर से रवाना हुआ। सर्वविध ऋद्धि, वैभव के साथ वह तेतलीपुर के बीचोंबीच होता हुआ, तेतलीपुत्र के घर आया और अपनी पुत्री पोट्टिला को उसे भार्या के रूप में प्रदान किया।
(१३) तए णं तेयलिपुत्ते पोटिलं दारियं भारियत्ताए उवणीयं पासइ २ त्ता पोटिलाए सद्धिं पट्टयं दुरूहइ २ त्ता सेयापीएहिं कलसेहिं अप्पाणं मज्जावेइ २ ता अग्गिहोमं करेइ २ त्ता पाणिग्गहणं करेइ २ त्ता पोट्टिलाए भारियाए मित्तणाइ जाव परिजणं विउलेणं असणपाण-खाइमसाइमेणं पुप्फ (वत्थ) जाव पडिविसज्जेइ।
भावार्थ - तेतलीपुत्र ने जब पोट्टिला को भार्या के रूप में लाया हुआ देखा तो वह
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