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तेतली पुत्र नामक चौदहवां अध्ययन - सन्तति परिवर्तन की आयोजना १०१ SEOCOGEOGanesaaCESSERECORDECEDEOGODOGGCDocessor लिये निर्वहन का आधारभूत होगा। तेतलीपुत्र ने पद्मावती देवी के इस विचार-कथन को स्वीकार किया और वापस लौट गया।
(१८) तए णं पउमावई य देवी पोट्टिला य अमच्ची सममेव गन्भं गेण्हंति सममेव परिवहंति (सममेव गन्भं परिवर्ल्डति) तए णं सा पउमावई णवण्हं मासाणं जाव पियदंसणं सुरूवं दारगं पयाया। जं रयणिं च णं पउमावई देवी दारयं पयाया तं रयणिं च णं पोहिला वि अमच्ची णवण्हं मासाणं विणिहायमावण्णं दारियं पयाया।
शब्दार्थ - विणिहायमावण्णं - विनिघातापन्ना - मरी हुई।
भावार्थ - तदनंतर पद्मावती देवी ने और पोट्टिला नामक अमात्य पत्नी ने एक साथ ही गर्भ धारण किया, परिवहन किया। दोनों गर्भ साथ ही साथ बढ़ते रहे। नौ महीने पूर्ण होने पर यावत् रानी पद्मावती ने देखने में प्रिय और सुरूप शिशु को जन्म दिया।
जिस रात रानी पद्मावती के पुत्र-जन्म हुआ उसी रात अमात्य पत्नी पोट्टिला ने भी नौ मास पूर्ण होने पर मरी हुई कन्या को जन्म दिया।
.. सन्तति परिवर्तन की आयोजना
(१६)
____तए णं सा पउमावई देवी अम्मधाई सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुमे अम्मो! तेयलिपुत्तगिहे तेयलिपुत्तं रहस्सिययं चेव सद्दावेह। तए णं सा अम्मधाई तहत्ति पडिसुणेइ २ ता अंतेउरस्स अवदारेणं णिग्गच्छइ २ ता जेणेव तेयलिस्स गिहे जेणेव तेयलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ २ त्ता करयल जाव एवं वयासी - एवं , खलु देवाणुप्पिया! पउमावई देवी सद्दावेइ।
भावार्थ - रानी पद्मावती ने धायमाता को बुलाया और कहा - माता! तुम तेतलीपुत्र के यहाँ जाओ और गुप्त रूप में उसे बुला लाओ। तब धायमाता ने यह स्वीकार किया। वह
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