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________________ तेतली णामं चोहसमं अज्झयणं तेतली पुत्र नामक चौदहवां अध्ययन जइ णं भते! समणेणं जाव संपत्तेणं तेरसमस्स णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते चोद्दसमस्स० के अट्टे पण्णत्ते? भावार्थ - जंबू स्वामी ने श्री सुधर्मा स्वामी से पूछा-भगवन्! श्रमण यावत् मोक्ष-प्राप्त भगवान् महावीर स्वामी ने तेरहवें ज्ञात अध्ययन का यह भाव आख्यातं किया है तो कृपया कहें, उन्होंने चवदहवें ज्ञाताध्ययन का क्या अर्थ बतलाया है। अमात्य तेतली-पुत्र एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं तेयलिपुरं णामं णयरं। पमयवणे उज्जाणे। भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी बोले - हे जंबू! उस काल उस समय तेतलीपुर नामक नगर था। उसमें प्रमदवन नामक उद्यान था। कणगरहे राया। तस्स णं कणगरहस्स पउमावई देवी। तस्स णं कणगरहस्स रणो तेयलिपुत्ते णामं अमच्चे सामदंड०। भावार्थ - तेतलीपुर का कनकरथ नामक राजा था। उसकी रानी का नाम पद्मावती था। राजा कनकरथ के तेतली पुत्र नामक अमात्य था। वह साम-दाम-दंड-भेद मूलक नीति से युक्त था, उनका प्रयोग करने में विज्ञ-विशेषज्ञ था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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