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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
भावार्थ - गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर स्वामी से पूछा-भगवन्! दर्दुरदेव की स्थिति कितने काल की प्रज्ञापित हुई है?
भगवान् बोले-गौतम! उसकी चार पल्योपम की स्थिति प्रज्ञापित की गई है। तदनंतर वह दर्दुर देव आयु क्षय, भव क्षय एवं स्थिति क्षय कर, वहाँ से च्यवन कर, महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध, बुद्ध होगा यावत् समस्त दुःखों का अंत करेगा।
(३४) एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव, संपत्तेणं तेरसमस्स णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि।
भावार्थ - इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने तैरहवें ज्ञात अध्ययन का अर्थ कहा है। जैसा मैंने उनसे श्रवण किया है, वैसा कहता हूँ।
उवणय गाहाओ - संपण्णगुणो वि जओ सुसाहुसंसग्गवजिओ पायं। पावइ गुणपरिहाणिं ददुर जीवोव्व मणियारो॥१॥ , तित्थयरवंदणत्थं चलिओ भावेण पावए सगं। जहददुरदेवेणं पत्तं वेमाणियसुरत्तं ॥२॥
॥तेरसमं अज्झयणं समत्तं॥ भावार्थ - उपनय गाथाएं - गुण संपन्न पुरुष भी यदि अच्छे साधुओं के संसर्ग से वंचित हो जाता है तो उसके गुणों की हानि उसी प्रकार हो जाती है, जिस प्रकार दर्दुर के जीव नंद मणिकार की हुई॥१॥
तीर्थंकर भगवान् की जो भाव पूर्वक वंदना करने जाता है, वह स्वर्ग प्राप्त करता है, जैसे दर्दुरदेव ने भगवान् के वंदनार्थ जाने के परिणाम स्वरूप वैमानिक देवत्व प्राप्त किया - वैमानिक देव के रूप में जन्म लिया॥२॥
॥ तेरहवां अध्ययन समाप्त।
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