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________________ ६४ xXxXxX ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र स्वर्णकार मूषिकारदारक एवं पोट्टिला (४) तत्थ णं तेयलिपुरे कलादे णामं मूसियारदारए होत्था अड्डे जाव अपरिभूए । तस्स णं भद्दा णामं भारिया । तस्स णं कलायस्स मूसियारदारयस्स धूया भद्दाए अत्तया पोहिला णामं दारिया होत्था रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्कट्ठा उक्किट्ठसरीरा । शब्दार्थ - कला - स्वर्णकार । भावार्थ - वहाँ मूषिकारदारक नामक स्वर्णकार निवास करता था। वह धन संपन्न यावत् जन सम्मानित था। उसकी पत्नी का नाम भद्रा था। स्वर्णकार के, भद्रा की कोख से उत्पन्न पोट्टिला नामके पुत्री थी। वह रूप, यौवन एवं लावण्य में उत्कृष्ट थी। उसका शरीर अत्यंत सुंदर था । विवेचन - कलाद का अर्थ स्वर्णकार (सुनार) है। यहाँ जिस कलाद का उल्लेख किया गया है उसके पिता का नाम 'मूषिकार' था। पिता के नाम पर ही उसे 'मूषिकारदारक' संज्ञा प्रदान की गई है। आगमों में अन्यत्र भी इस प्रकार की शैली अपनाई गई है। - (५) तए णं सा पोट्टिला दारिया अण्णया कयाइ ण्हाया सव्वालंकारविभूसिया चेडियाचक्कवालसंपरिवुडा उप्पिं पासायवरगया आगासतलगंसि कणगमएणं तिदूसरणं कीलमाणी २ विहरइ । भावार्थ एक बार का प्रसंग है, कन्या पोट्टिला स्नान कर, अलंकारों से विभूषित होकर, दासियों के समूह से घिरी हुई, अपने प्रासाद के ऊपर, अगासी पर स्वर्ण खचित गेंद से खेल रही थी । तेतली Jain Education International xxxx पोहिला पर मुग्ध (६) इमं च णं तेयलिपुत्ते अमच्चे पहाए आसखंधवरगए महया भडचडगर पुत्र For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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