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________________ ८३ मण्डुक (दर्दुर) ज्ञात नामक तेरहवां अध्ययन - नंद व्याधिग्रस्त OCOCCccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccx य जाव कुसलपुत्ता य सत्थकोसहत्थगया य कोसगपायहत्थगया य सिलियाहत्थगया य गुलियाहत्थगया य ओसहभेसजहत्थगया य सएहिं २ गिहेहितो णिक्खमंति २ ता रायगिहं मज्झमझेणं जेणेव णंदस्स मणियार सेट्ठिस्स गिहे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता णंदस्स मणियारस्स सरीरं पासंति २ तेसि रोयायंकाणं णियाणं पुच्छंति २ त्ता णंदस्स मणियारस्स बहूहि उव्वलणेहि य उव्वदृणेहि सिणेहपाणेहि य वमणेहि य विरेयणेहि य सेयणेहि य अवदहणेहि य अवण्हाणेहि य अणुवासणेहि य वत्थिकम्मेहि य णिरूहेहि य-सिरावेहेहि य तच्छणाहि य पच्छणाहि य सिरावेढेहि य तप्पणाहि य पुढवाएहि य छल्लीहि य वल्लीहि य मूलेहि य कंदेहि य पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य बीएहि य सिलियाहि य गुलियाहि य ओसहेहि य भेसजेहि य इच्छंति तेसिं सोलसण्हं रोयायंकाणं एगमवि रोयायंकं उवसामित्तए णो चेव णं संचाएंति उवसामेत्तए। शब्दार्थ - सत्थकोसहत्थगया - शल्य क्रिया हेतु हाथ में उपकरण लिए हुए, कोसंगपायहत्थगया - चिकित्सा में प्रयोजनीय चर्ममय. उपकरण हाथ में लिए हुए, सिलियाहत्थगया - कुटक चिरायता आदि अत्यंत तीक्ष्ण, कड़वी दवाईयाँ हस्तगत किए हुए, गुलियाहत्थगया - विविध-द्रव्य-संयोग निर्मित, वटिकाएं-गुटिकाएं, गोलियाँ हाथों में लिए हुए, णियाणं - निदान-रोगोत्पत्ति कारण, उव्वलणेहि - देह पर औषध-लेपन द्वारा, उव्वदृणेहि औषध निर्मित उबटनों द्वारा, सिणेहपाणेहि - घृतपान द्वारा, वमणेहि - वमन द्वारा, विरेयणेहिविरेचन द्वारा, सेयणेहि - सेचन द्वारा, अवदहणेहि - तप्त लोह से देह दाहंकन-डाम द्वारा, अवण्हाणेहि - दाद-खाज आदि मिटाने हेतु औषधि मिश्रित जल स्नान, अणुवासणेहि - मल शुद्धि हेतु गुदा मार्ग द्वारा तेल आदि पहुँचाना, वत्थिकम्मेहि - एनीमा लगाना, णिरूहेहि - चर्म निर्मित नलिकादि द्वारा औषधि पक्व तैल के प्रयोग से मलशुद्धि करवाना, सिरावेहेहि - विकृत रक्त निकालने हेतु नाड़ी विशेष का वेधन, तच्छणाहि - क्षुरे आदि से चमड़ी के छेदन द्वारा, पच्छणाहि - चमड़ी को छीलकर, सिरावेढेहि - नाड़ियों के वेष्टन-बंधन द्वारा, तप्पणाहितैल, घी आदि की मालिश से, पुढवाएहि - पाक हेतु अग्नि में अनेक पुढे देकर तैयार की गई भस्मादि औषधियों द्वारा, छल्लीहि - वृक्षों की छाल, वल्लीहि - गडूची आदि लताएं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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