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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र WORaaaaaaaaaaEEKRECEBOOceaniamaBEReaaaaaaaaaax तए णं से गंदे मणियार सेट्ठी सोलसहिं रोयायंकेहिं अभिभूए समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! रायगिहे णयरे सिंघाडग जाव पहेसु महया २ सद्देणं उग्घोसेमाणा २ एवं वयह-एवं खलु देवाणुप्पिया! णंदस्स मणियार(सेटि)स्स सरीरगंसि सोलस रोयायंका पाउन्भूया तंजहा-सासे जाव कोढे तं जो णं इच्छह देवाणुप्पिया! वेजो वा वेजपुत्तो वा जाणुओ वा २ कुसलो वा २ णंदस्स मणियारस्स तेसिं च णं सोलसण्हं रोयायंकाणं एगमवि रोयायंकं उवसामेत्तए तस्स णं देवाणुप्पिया! णंदे मणियारे विउलं अत्थ संपयाणं दलयइ-त्तिकट्ट दोच्चंपि तच्चंपि घोसणं घोसेह २ त्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह तेवि तहेव पच्चप्पिणंति। ___शब्दार्थ - सासे - श्वास, कासे - खांसी, जरे - ज्वर, दाहे - जलन, कुच्छिसूले - पेट में तीक्ष्ण पीड़ा, अरिसा - अर्श-मस्सा या बवासीर, अजीरए - अजीर्ण, दिट्ठिमुद्धसूले - नेत्रशूल, अगारए - भोजन आदि में अरुचि, अच्छिवेयणा - नेत्रपीड़ा, कंडू- खुजली, दउदरेजलोदर।
भावार्थ - कुछ समय के अनंतर ऐसा घटित हुआ, नंदमणिकार के शरीर में श्वास, कास, ज्वर, दाह, कुक्षिशूल, भगदर, बवासीर, अजीर्ण, मस्तक शूल, अरुचि, नेत्र वेदना, कर्ण पीड़ा, खाज, जलोदर तथा कुष्ठ-ये सोलह रोग हो गए।
सोलह रोगों से पीड़ित हुए नंद मणिकार ने अपने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और कहा - देवानुप्रियो! तुम राजगृह नगर में जाओ, वहाँ तिराहों, चौराहों, बड़े मार्गों आदि में उच्च स्वर से यह घोषणा करवाओ - ऐसा कहलवाओ कि देवानुप्रियो! मणियार श्रेष्ठी नंद के शरीर में श्वास यावत् कुष्ठ पर्यंत सोलह रोग हो गए हैं। अतः जो कोई वैद्य, अनुभवी चिकित्सक, अभिनव चिकित्सा योग का प्रयोक्ता अथवा इनके पुत्र उन रोगों में से एक भी रोग को उपशांत कर दे तो नंद मणिकार उसे विपुल अर्थ-संपदा देगा। इस प्रकार दो बार-तीन बार यह घोषणा करवाओ। यह घोषणा करवा कर मुझे वापस सूचित करो।
(२१). तए णं रायगिहे इमेयारूवं घोसणं सोचा णिसम्म बहवे वेजा य वेजपुत्ता
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