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. प्रथम अध्ययन - राजकुमार अभय का आगमन
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_अण्णया ममं सेणिए राया एज्जमाणं पासइ, पासित्ता आढाइ परियाणइ सक्कारेइ सम्माणेइ आलवइ संलवइ अद्धासणेणं उवणिमंतेइ मत्थयंसि अग्याइ। इयाणिं ममं सेणिए राया णो आढाइ णो परियाणइ णो सक्कारेइ सम्माणेइ णो इटाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं ओरालाहिं वग्गूहिं आलवइ संलवइ णो अद्धासणेणं उवणिमंतेइ णो मत्थयंसि अग्याइ किंपि ओहयमणसंकप्पे झियायइ। तं भवियव्वं णं एत्थं कारणेणं। तं सेयं खलु मे सेणियं रायं एयमद्वं पुच्छित्तए। एवं संपेहेड़, संपेहेत्ता जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ २त्ता एवं वयासी - __शब्दार्थ - अण्णया - अन्य समय, ममं - मुझको, एज्जमाणं - आते हुए, आलवइवार्तालाप करते, अद्धासणेणं - आधे आसन पर, उवणिमंतेइ - उप निमंत्रित करते-बुलाने, मत्थयंसि - मस्तक को, अग्याइ - सूंघते (चूमते), याणि - इस समय, भवियव्वं - होना चाहिये, सेयं - श्रेयस्कर, पुच्छित्तए - पूछना, संपेहेइ - संप्रेक्षण करता है, मन में चिंतन करता है।
भावार्थ - अन्य समय महाराज श्रेणिक जब मुझे आता देखते तो आदर करते, सत्कार करते, सम्मान करते, आलाप-संलाप करते। अपने आसन के आधे भाग पर बैठने के लिए आमंत्रित करते तथा. मेरा मस्तक सूंघते (चूमते)। परंतु आज वे वैसा कुछ भी नहीं कर रहे हैं। न वे इष्ट, कांत, प्रिय और मनोज्ञ वाणी से वार्तालाप ही कर रहे हैं। उनके मानसिक संकल्प पर कुछ आघात पहुंचा है, ऐसा प्रतीत होता है। इसका कोई न कोई कारण होना चाहिये। अतः यही श्रेयस्कर है कि-मैं महाराज से इस संबंध में पूछ। यों विचार कर वह राजा श्रेणिक के पास आया और हाथ जोड़ कर, मस्तक झुकाकर, उन्हें प्रणाम करते हुए जय-विजय शब्द द्वारा वर्धापित करते हुए, इस प्रकार बोला -
(६१) तुम्भे णं ताओ! अण्णया ममं एज्जमाणं पासित्ता आढाह परियाणह जाव
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