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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
मत्थयंसि अग्घायह आसणेणं उवणिमंतेह, इयाणिं ताओ! तुब्भे ममं णो आढाह जाव णो आसणेणं उवणिमंतेह किंपि ओहयमणसंकप्पा जाव झियायह, तं भवियव्वं ताओ! एत्थ कारणेणं, तओ तुम्भे मम ताओ! एवं कारणं अगूहेमाणा असंकेमाणा अणिण्हवेमाणा अपच्छाएमाणा जहाभूय-मवितह-मसंदिद्धं एयमट्ठ आइक्खह । तए णं हं तस्स कारणस्स अंतगमणं गमिस्सामि ।
शब्दार्थ - ताओ - तात- पिता, इयाणिं - इस समय, अगूर्हेमाणा- नहीं छिपाते हुए, असंकेमाणा - शंका न करते हुए, अणिण्हवेमाणा - मनोगत बात को अप्रकट न रखते हुए, अपच्छाएमाणा चिंतित विषय को गुप्त न रखते हुए, जहाभूय - जैसा है वैसा, अवितहं सद्भूत - यथार्थ, संदिद्धं - संदेह रहित, आइक्खह आख्यात करें, अंतगमणं अंतर्गमन
बारीकी से जानना ।
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भावार्थ - पिता श्री ! अन्य समय जब मुझे आप आता देखते तो आदर देते, मस्तक सूंघते ( चूमते), आसन पर बैठने के लिए कहते। इस समय आप वैसा कुछ नहीं कर रहे हैं। आपके मानसिक संकल्प पर कोई आघात पहुँचा है, अतएव आप आर्त्तध्यान में है। इसका अवश्य ही कोई न कोई कारण है। पिता श्री! उस कारण को न छिपाते हुए, किसी प्रकार की शंका न करते हुए, अप्रकट न रखते हुए, जैसा है, उसे उसी रूप में ज्यों का त्यों, सही-सही बतलाएँ, मैं उसके कारण की बारीकी से खोज करूंगा।
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तसे सेणि राया अभएणं कुमारेणं एवं वृत्ते समाणे अभयकुमारं एवं वयासी - एवं खलु पुत्ता! तव चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए तस्स गब्भस्स दोस मासेसु अइक्कंतेसु तइयमासे वट्टमाणे दोहलकाल समयंसि अयमेयारूवे दोहले पाउब्भवित्था - धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं जाव विर्णिति । तए णं अहं पुत्ता ! धारिणीए देवीए तस्स अकालदोहलस्स बहूहिं आएहि य उवाएहिं जाव उप्पत्तिं अविंदमाणे ओहय- मणसंकप्पे जाव झियायामि तुमं आगयंपि ण याणामि, तं एएणं कारणेणं अहं पुत्ता ! ओहय- मणसंकप्पे जाव झियामि ।
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