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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
दुःखित मत बनो, आर्तध्यान मत करो। मैं ऐसा उपाय करूँगा, जिससे तुम्हारा यह अकाल मेघ दर्शन विषयक दोहद मनोरथ पूर्ण होगा। यों कहकर उसने धारिणी देवी को इष्ट, कांत, प्रिय, मनोज्ञ और मनोरम वाणी द्वारा भलीभाँति आश्वासन दिया, धीरज बंधाया। फिर वह बाहरी सभा भवन में आया, पूर्वाभिमुख होकर सिंहासन पर बैठा। धारिणी देवी के अकाल मेघ दर्शन विषयक दोहद की पूर्ति हेतु चारों बुद्धियों से अनेक प्रकार चिंतन किया, उपायों को खोजने का प्रयास किया, किंतु उस विषय में उसे कुछ भी नहीं सूझा। वह हताश एवं चिंताकुल हो गया। राजकुमार अभय का आगमन
(५८) तयाणंतरं च णं अभए कुमारे पहाए कयबलिकम्मे जाव सव्वालंकार विभूसिए पायवंदए पहारेत्थ गमणाए।
शब्दार्थ - पायवंदए - चरणों में वंदन करने हेतु, गमणाए - जाने का, पहारेत्थ - निश्चय किया।
भावार्थ - दूसरी ओर कुमार अभय ने अपने आवास स्थान में स्नानादि नित्य नैमिक्तिक मंगलोपचार किए, सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित हुआ तथा अपने पिता राजा श्रेणिक को प्रणाम करने हेतु जाने का विचार किया।
(५९) तए णं से अभयकुमारे जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं ओहय-मणसंकप्पं जाव झियायमाणं पासइ, पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था। . .. शब्दार्थ - अज्झथिए - मन में ऊहापोह किया, पत्थिए - प्रार्थित-तथ्य जानने हेतु तत्पर, समुप्पज्जित्था - उत्पन्न हुआ।
भावार्थ - अभयकुमार राजा श्रेणिक के समीप आया और देखा कि उनके मन पर कुछ आघात पहुंचा है, कुछ हताश जैसे हैं, यह देखकर वह मन ही मन ऊहापोह करने लगा, सोचने लगा तथा उसके मन में ऐसा विचार आया।
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