________________
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
में धारण करने की करधनी, सुकयसोहे - सुंदर शोभा निष्पादित की, पिणिद्धगेविज्जे - कंठहार पहना, अंगुलेज्जग - अंगूठियाँ, ललियंगय - सुंदर अंग, ललियकयाभरणे - सुहावने आभूषण, तुडिय - भुजबंद, थंभिय - स्तंभित-धारण किए, भूए - भुजाएँ, अहिय - अधिक, रूव - रूप, कुंडलज्जोइय - कर्णभूषणों से उद्योतित-प्रकाशित, आणणे - मुख, मउड - मुकुट, दित्तसिरए - मस्तक पर रखा, उत्थय - उठे हुए, सुकय-सुंदर रूप में निर्मित, वच्छेवक्षस्थल, पडउत्तरिज्जे - उत्तरीय वस्त्र, मुद्दिया-पिंगलंगुलिए - धारण की हुई मुद्रिकाओं के पीले नगों के कारण पीत अंगुली युक्त, उविय - उचित-शोभान्वित, मिसिमिसंत - देदीप्यमान, सुसिलिट्ठ - अत्यन्त शोभामय, संठिय - संस्थित, वीरवलए - वीरवलय-परिकर-कमरबंध, किं बहुणा - अधिक क्या कहा जाय, कप्परुक्खए - कल्पवृक्ष, चेव - और, सकोरंटमल्ल-दामेणं - कोरंट के पुष्पों से बनी मालाओं से युक्त, छत्तेणं - छत्र द्वारा, धरिज्जमाणेणंधार्यमाण-धारण किए हुए, चउचामरवाल - चार चँवरों के बालों से, वीइयंगे - विजितांगअंगों पर डुलाए जा रहे थे, सद्द - शब्द, कयालोए - दिखाई देने पर, गणणायग - गणनायक-सामंत, दंडणायग - दंडाधिकारी-कोतवाल, राई - राजा-माण्डलिक या अधीनस्थ राजा, ईसर - युवराज या ऐश्वर्य संपन्न, तलवर - राजा द्वारा पुरष्कृत स्वर्णपट्टशोभित, माडंबियमांडविक-कतिपय ग्रामों के अधिपति-जागीरदार, कोडुंबिय - कतिपय परिवारों के प्रधान, मंतिमंत्री, महामंति - महामंत्री, गणग - ज्योतिषी या कोषाध्यक्ष, दोवारिय - द्वारपाल, अमच्चअमात्य-सचिव, चेड - सेवक, पीढमद्द - अंगरक्षक, णगर-णिगम-सेट्टि - नागरिक, व्यापारी तथा श्रेष्ठिजन, सेणावइ - सेनापति, सत्थवाह - सार्थवाह-देश विदेश में व्यापार करने वाले, दूय - दूत, संधिवाल - संधिपाल-संधि योजना में निपुण, सद्धिं - से या साथ, संपरिवुडे - संपरिवृत्त, धवल - निर्मल, सफेद, महामेह - महामेघ, णिग्गए - निकले हुए, गहगण - ग्रह-समूह, दिप्पंत - दीप्त होते हुए, अंतरिक्ख - अंतरिक्ष-आकाश, मज्झे-मध्य, ससि व्वचंद्रमा के समान, पियदंसणे - देखने में आनंदप्रद, सीहासण-वरगए - उत्तम सिंहासनोपगत, पुरत्थाभिमुहे - पूर्वाभिमुख, सण्णिसण्णे - बैठा।
भावार्थ - व्यायामशाला से बाहर निकलकर राजा श्रेणिक ने स्नानागार में प्रवेश किया। वह स्नानागार चारों ओर मनोहर जालियों से युक्त था। उसके भीतर मणिरत्न जटित चित्रांकित रमणीय स्नानमण्डप बना था। रत्न निर्मित स्नानपीठ-नहाने का बाजोट था। राजा उस पर बैठा। उसने स्नानार्थ लाए हुए पवित्र, शुद्ध, सुगंधित निर्मल जल से उत्तम विधि पूर्वक भलीभाँति
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org