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________________ प्रथम अध्ययन श्रेणिक का उपस्थान शाला में आगमन Jain Education International - आनंद लेते हुए स्नान किया । मृदुल, सुरभित तौलिए से देह को पौंछा। देह पर गोशीर्ष चंदन आदि सरस, उत्तम गंध युक्त अंगराग लगाए । बहुमूल्य श्रेष्ठ वस्त्र धारण किए। अनेक प्रकार की मणियों एवं रत्नों से बनाए हुए छोटे-बड़े हार भुजबंध, कुंडल, अंगुठियाँ आदि अनेकानेक आभरण, सुंदर, कलापूर्ण, स्वर्ण, रत्नादि निर्मित वीरवलय परिकर धारण किया । छत्रवाहक राजा के मस्तक पर कोरण्टपुष्प की माला जिस पर डाली गई है ऐसा छत्र धारण किए हुए थे। दोनों ओर सेत्रक चँवर डुला रहे थे । . राजा. स्नानघर से बाहर निकला। लोग मंगलमय जयघोष करने लगे । राजा अनेक गणनायक, दण्डनायक, अधीनस्थ राजन्यगण, मंत्री, महामंत्री, अमात्य, सेनापति, अंगरक्षक, द्वारपाल, सम्मानित नागरिक वृंद, सार्थवाह, व्यापारी, ज्योतिषी, परिचारकवृंद आदि से घिरा हुआ, ऐसा प्रतीत होता था मानो बादलों के समूह से निकलता हुआ नक्षत्र - मध्यवर्ती चंद्रमा हो । राजा सभा भवन में आया और पूर्वाभिमुख होकर सिंहासन पर आसीन हुआ । तए णं से सेणिए राया अप्पणो अदूरसामंते उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अट्ठ भद्दासणाई सेयवत्थ - पच्चुत्थुयाइं सिद्धत्थ- मंगलोवयार-कयसंतिकम्माई रयावेइ त्ता (अप्पणो अदूर सामंते ) णाणामणि- रयणमंडियं अहिय-पेच्छणिज्ज-रूवं महग्घव पट्टणुग्यं सह बहुभत्तिसय-चित्त (ट्ठा ) ठाणं ईहामिय - उसभ-तुरय-रमगर - विहग-वालग - किण्णर- रुरु- सरभ- चमर- कुंजर - वणलय-पउमलयभत्तिचित्तं सुखचिय-वर कणग-पवर पेरंत-देसभागं अब्भिंतरियं जवणियं अंछावेइ २ त्ता अ(च्छ) त्थरग-मउअ - मसूरग - उच्छइयं धवल - वत्थ-पच्चत्थुयं विसिद्धं अंग- सुहफासयं सुमउयं धारिणीए देवीए भद्दासणं रयावेइ २ त्ता कोडुंबिय पुरसे सहावे, सद्दावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अट्टंगमहाणिमित्त-सत्तत्थ-पाढए विविहसत्थकुसले सुमिणपाढए सद्दावेह, सद्दावेत्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह । आठ, सेयवत्थ - श्वेत वस्त्र, पच्चुत्थुयाई शब्दार्थ - अप्पणो - अपने, अट्ठ प्रत्युस्थितविघ्न शान्ति हेतु, मंगलोवयार मंगलोपचार- सफेद - ऊपर रखे हुए, सिद्धत्थ सरसों आदि के मांगलिक उपचार, रयावेड़ - रचना कराता है, मंडिय - मंडित, पेच्छणिज्जरूवं - - For Personal & Private Use Only ४७ - - www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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