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________________ ४४ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्रं ___भारतवर्ष में प्राचीन काल में आयुर्वेद बहुत उन्नत रहा है। उसमें रोग-निदान और चिकित्सा के अतिरिक्त स्वस्थवृत्त का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। चरक-संहिता आदि प्राचीन ग्रंथों में वह भलीभाँति व्याख्यात है। व्यक्ति किस तरह स्वस्थ रहे, इस हेतु बहुत प्रकार के प्रयोगों का वहाँ . उल्लेख हुआ है। ऐसा अनुमान है, शतपाक एवं सहस्रपाक विशेष प्रकार के तैल थे, जिनको विशिष्ट लोग मालिश या अंगमर्दन में प्रयोग में लेते थे। उपासकदशांग-सूत्र में भगवान् महावीर स्वामी के प्रमुख श्रावक आनन्द द्वारा व्रत-ग्रहण के अन्तर्गत इनका उल्लेख हुआ है। आनंद ने मालिश हेतु शतपाक एवं सहस्रपाक तैलों के. अतिरिक्त और सभी मालिश के तैलों का परित्याग किया*। आचार्य अभयदेवसूरि ने उपासकंदशांग सूत्र के इस प्रसंग पर जो टीका लिखी है, उसमें इनके संबंध में चर्चा की है। उनके अनुसार शतपाक ऐसा तैल रहा हो, जिसमें सौ प्रकार के द्रव्य पड़े हों अथवा जिसका सौ बार परिपाक किया गया हो। इसी प्रकार सहस्रपाक ऐसा तैल रहा हो, जिसमें सौ के स्थान पर सहस्र द्रव्य पड़े हों अथवा जिसका सहस्र बार परिपाक किया गया हो। (३०) पडिणिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ २ ता मज्जणघरं अणुपविसइ २ ता स(मु)मं(त)त्तजालाभिरामे विचित्तमणिरयणकोट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडवंसि णाणामणि-रयणभत्तिचित्तंसि पहाणपीढंसि सुहणिसण्णे सुहोदएहिं पुप्फोदएहिं गंधोदएहिं सुद्धोदएहिं य पुणो पुणो कल्लाणग-पवर मज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणग-पवर-मज्जणावसाणे पम्हल-सुकुमाल-गंधकासाईय-लूहियंगे अहय-सुमहग्घ-दूसरयण-सुसंवुए सरस-सुरभि-गोसीस चंदणाणुलित्तगत्ते सुइमाला-वण्णग-विलेवणे आविद्धमणि-सुवण्णे कप्पिय-हारद्धहार-तिसरय-पालंब पलंबमाण-कडिसुत्त-सुकयसोहे पि(ण)णिद्धगेविज्जे अंगुलेज्जग-ललियंगय-ललियकया-भरणे णाणामणिकडग-तुडिय-थंभियभूए अहियरूव-सस्सिरीए कुंडलुज्जोइ-याणणे मउडदित्त * उपासकदशांग सूत्र अध्ययन १ सूत्र २५। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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