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प्रथम अध्ययन - श्रेणिक का उपस्थान शाला में आगमन
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सभी इंद्रियों का संस्फुरण सधता है। तेल-मालिश के बाद अभ्यंगन दक्ष व्यक्तियों ने उनके शरीर पर विविध प्रकार से उबटन लगाया जो अस्थि, मांस, त्वचा एवं रोम आदि सभी के लिए सुखप्रद, प्रीतिजनक था। इस प्रकार वह राजा शरीरोपयोगी व्यायाम, मालिश इत्यादि करवाकर व्यायामशाला से बाहर निकला।
विवेचन - प्राचीन भारत में प्रत्येक कार्य को अत्यंत समीचीनता, सुंदरता और उपयुक्तता के साथ निष्पन्न करने का लोगों में विशेष रुझान था। यद्यपि आध्यात्मिक दृष्टि से देह क्षणभंगुर ' है किंतु जीवन के परमलक्ष्य-मोक्ष को साधने में वह उपयोगी भी है। साथ ही साथ वह
लौकिक, सामाजिक, पारिवारिक उत्तरदायित्वों को पूर्ण करने में भी उपयोगी होता है। इसलिए ऐहिक दृष्टि से उसे स्वस्थ, बलिष्ठ, कार्यदक्ष एवं समर्थ बनाना आवश्यक है। .... प्राचीन कालीन एकतंत्रीय शासन प्रणाली में राजा का सर्वाधिक महत्त्व था। शासन, राष्ट्ररक्षा प्रजा के लिए सुख-सुविधाओं की अत्यधिक व्यवस्था, आशंकित विघ्नों से सावधानी, आकस्मिक आपदाओं का मुकाबला इत्यादि अनेक उत्तरदायित्वों के निर्वाह का मुख्य केन्द्र राजा होता था। सामर्थ्यपूर्वक संचालन हेतु राजा के व्यक्तित्व में जहाँ बुद्धि कौशल, शासननैपुण्य, औदार्य आदि गुणों का.महत्त्व है, उसी प्रकार दैहिक शक्तिमत्ता, बलिष्ठता, सुष्ठता एवं प्रभावकारिता का भी अपना महत्त्व है।
इस सूत्र में राजा के व्यायामशाला में आने एवं व्यायाम करने का जो वर्णन आया है, वह - इस तथ्य का द्योतक है कि प्राचीन काल के राजा दायित्व-निर्वाह की दृष्टि से अपने शरीर की सबलता एवं स्वस्थता का पूरा ध्यान रखते थे। "क्षतात् त्रायत - इति क्षत्रियः" - जो दूसरों . को दुःख से, पीड़ा से, संकट से बचाता है, वह क्षत्रिय है। क्षत्रिय की इस परिभाषा को सार्थकता देना राजा अपना कर्त्तव्य मानता था। तदर्थ जैसा ऊपर सूचित हुआ है, दैहिक सामर्थ्य सर्वथा अपेक्षित होता है। स्वस्थ एवं सबल शरीर, साधना तथा तपश्चर्या में भी उपयोगी सिद्ध होता है। इसी कारण अष्टांग-योग में यम-नियमों के पश्चात् आसनों का स्थान है*, जो अरुग्णता. एवं स्वस्थता के साथ-साथ ध्यान के अभ्यास में भी सहायक होते हैं।
इस प्रकरण में राजा द्वारा शतपाक एवं सहस्रपाक तैलों द्वारा मालिश कराए जाने का उल्लेख हुआ है। ये आयुर्वेदिक पद्धति से तैयार किए गए विशेष तेल थे, ऐसा प्रतीत होता है।
* पातंजल योग-सूत्र साधन पाट सूत्र - २६
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