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ज्ञाताधर्मकथांग सत्र
करणगुण-णिम्माएहिं अहिं सुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए चउव्विहाए संबाहणाए संबाहिए समाणे अवगयपरिस्समे णरिंदे अट्टणसालाओ पडिणिक्खमइ।
शब्दार्थ - उट्टेइत्ता - उठकर, अदृणसाला - व्यायामशाला, उवागच्छइ - आता है, अणुपविसइ - अनुप्रविष्ट होता है-अन्दर आता है, वायाम - व्यायाम, जोग- योग्य, वग्गणवल्गन-कूदना, वामद्दण - व्यामर्दन-बाहु आदि अंगों को परस्पर मरोड़ना, मल्लजुद्धकरणेहिं - कुश्ती का अभ्यास करना, संते - श्रांत-श्रम करने से थकावट युक्त, परिस्संते - परिश्रांत-थका . हुआ, सयपागेहिं सहस्सपागेहिं - शतपाक-सहस्रपाक-सौ बार तथा एक हजार बार पकाए . हुए, सुगंधवरतेल्लमाइएहिं - सुगंधित उत्तम तेल आदि से, पीणणिज्जेहिं - प्रियणीय-प्रीतिप्रद, दीवणिज्जेहिं - दीपनीय-जठराग्नि को उद्दीप्त करने वाले, दप्पणिज्जेहिं - दर्पणीय-देह बल की वृद्धि करने वाले, मयणिज्जेहिं - मदनीय-कामवर्धक, विहंणिज्जेहिं - बृहणीय-मांसवर्धक, सव्विंदियगाय पल्हायणिज्जेहिं - समस्त इंद्रियों एवं गात्र-शरीर को प्राह्लादित, आनंदित करने वाले, अब्भंगएहिं - अभ्यंगन-उबटनों द्वारा, तेल्लचम्मंसि - तेलमालिश, पडिपुण्ण - परिपूर्णभलीभाँति किए हुए, पाणिपाय - हाथ-पैर, सुकुमालकोमलतलेहिं - सुकुमार एवं कोमल तल युक्त; छेएहिं - छेक, अवसरज्ञ, दक्खेहिं - दक्ष-तत्क्षण कार्य करने में सक्षम, पढेंहिं - बलिष्ठ, कुसलेहिं - मर्दन करने में प्रवीण, मेहावीहिं - प्रतिभाशाली, णिउणेहिं - निपुण, णिउणसिप्पोवगएहिं - निपुण शिल्पगत-अंगमर्दन आदि के सूक्ष्म रहस्यों में निपुण, जियपरिस्समेहिं - जित परिश्रम-परिश्रम को जीतने वाले, परिमद्दण - परिमर्दन, उव्वदृण - उद्वेलन-गर्दन आदि अंगों का विशेष रूप से उद्वर्तन-उबटन, णिम्माएहिं - इन कार्यों को करने वाले, अट्ठिसुहाए - अस्थियों-हड्डियों के लिए सुखकर, मंससुहाए - मांस के लिए सुखप्रद, तयासुहाए - त्वचा के लिए प्रीतिकर, चउविहाए - चार प्रकार के, संबाहणाए - संवाहनमर्दन आदि क्रियाओं से, अवगयपरिस्समे - अपगत परिश्रम-थकावट रहित, णरिंदे - नरेन्द्रराजा, पडिणिक्खमइ - प्रतिनिष्क्रान्त हुआ-बाहर निकला।
भावार्थ - राजा श्रेणिक अपनी शय्या से उठकर व्यायामशाला में आया। उसने अनेक प्रकार से व्यायाम किया। भारी वस्तुओं को उठाना, कूदना, अंगों को परस्पर मरोड़ना, कुश्ती का अभ्यास इत्यादि अनेक प्रकार के उपक्रम उसमें थे। व्यायामजनित परिश्रांति को दूर करने हेतु शतपाक एवं सहस्रपाक आदि सुगंधित तैलों से उसने मालिश करवाई, जिनसे रक्त-प्रवाह का सुसंचालन, देह की धातुओं का परिष्करण, जठराग्नि का दीपन, शक्ति-संवर्धन तथा शरीर एवं
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